योग सूत्र का रहस्य हिन्दीमे-Yoga sutra of Patanjali in hindi|Yoga Sutra in hindi

patanjali yoga sutras in hindi

हमने यह blog की complete series में प्रारंभ में cosmic energy के बारेमे समजा. उनके बाद हमने देखा की cosmic energy हमे क्यों पूरी मात्रा में नही मिलती इनके लिए हमने शरीर की रचना का भी अभ्यास किया. इसी शक्ति को प्राप्त करके हमारा जीवन आनंद युक्त हो और तनाव मुक्त कैसे हो ये यहा पर समजेगे. इनके साथ साथ जो भी योग में सिद्धिओ प्राप्त करना चाहता है उसे किस तरह से मिल पाए उनकी रजुआत इन सूत्र में की गई है.

कोई भी व्यक्ति को आसानी से समज में आ जाये इसलिए हम फिर से यहा प्रश्न की रजुआत करते है की हमारा प्रश्न यह है की हम मन और उनके बनाये हुए घेरे में उलज गये है. मन की इसी सारी उलझनों को ही patanjali sutra मुनि वृति कहते है. मुनि कहते है की वृति या दो प्रकार की है एक वृति है क्लिष्ट और दूसरी है अक्लिष्ट.

जो क्लेशयुक्त वृति है वह हमेशा अपना विपरीत प्रभाव डालती रहती है. मतलब की हमे उलझन में डालती रहती है. उसमें सुधार लाने के लिए ही योग सूत्र है. योग सूत्र एक पूरा map है उसमे पूरी की पूरी थियरी इस तरह से दी गई है की व्यक्ति उस आधार पर चलके समाधि तक मतलब की cosmic energy या इश्वरीय चेतना की पूर्ण स्थिती तक और सरलता से पहोच शके. अपनी इस मानसिक मथामण को पूरी तरह से जान शके.

जीनके अभ्यास से आनंद की अनुभूति सहज हो. योग से सफलता कैसे मिलती है ? आनंद कैसे प्राप्त होता है ? हमारा जीवन किस लिए है ? Is any stage of our self where we can experience full of pleasure without interruption ? कई गहन प्रश्नों के उत्तर क्या हो शकते है ? This type of question will be solved in yoga sutra when we read and practice of yoga.

उन सभी का यहाँ पे उल्लेख किया जायेगा. और ये सरल शब्दों में अर्थात जिसे हम समज पाए. उतना ही नहीं योग से सुख, सफलता और दुखो से मुक्ति आदि जो भी अप्रत्यक्ष लाभ है वह सब यहाँ पे मिलेगे. मेरी ये challenge है की इनके अभ्यास और पालन से दिव्यता अचूक प्राप्त होगी इतना ही नहीं वर्तमान जीवन में भी कोई notable लाभ होगा. आप लाभ को comment box में share कर शकते है. यहाँ से हमारी योग यात्रा शरू होती है.

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The aim of yoga is to realize that Our Existence is beyond the body and mind

हम योग के बारेमे केवल इतना ही जानते है की यह एक exercise करने की पध्धति है लेकिन सच बात तो यह है की यह हमारी पूरी सोच को बदल देती है. हम अपने आप को केवल मन और तन ही समजते है लेकीन हमे अपने self awareness का अनुभव करना चाहिए. हमारा अस्तित्व केवल इस शरीर और मन ही नही है लेकिन उनसे भी आगे एक आनंद मई चेतना है. उसे ही पतंजली मुनि द्रष्टा कहते है. इसलिए योग सूत्र का पहला पाद है वह समधी है. अगर हमारा मन शुद्ध हो तो समाधी सहज रूप से हमे प्राप्त हो जाएगी. लेकिन अगर ये न हो शके तो इनके बाद का जो पद है उनका इस्तमाल करना पड़ेगा. मतलब की साधनापाद.

पतंजली योग सूत्र में चार पाद का वर्णन है.

समाधि पाद:– जिस साधक का चित शुद्ध हो जिनके मनमे कोई भी क्लेश न हो वह मतलब की शुद्ध निर्मल जल की तरह हो उसे समाधि सहज रूप से मिल जाती है. उसे आनंद की अनुभूति सहज हो जाती है.उन्हें केवल उसे अपनी चेतना में नियुक्त करना पड़ता है. मतलब की थोडा सा ध्यान करे की तुरंत वह एकाकार हो जाता है. उनके लिए अलग अलग पध्धतिका भी उल्लेख किया गया है.

साधना पाद:– अगर किसीका चित शुद्ध न हो मनमें अनेक किस्म की सोच उभर कर आती रहती हो तो मतलब की सरोवर का पानी मलिन हो तो पहले उस कचरे को थोडा साफ कर लेना चाहिए क्योकि यही कचरा बार बार उभर कर आएगा और हमे परेशान करता रहेगा. उसे ही क्लेश कहते है. उसी क्लेश को मिटाने के लिए मुनि ने आठ अंग दिए है यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि. मतलब की अगर कोई इस आठ अंगो का पालन करे तो वह धीरे धीरे समाधि तक पहोच शकता है.

विभूति पाद:- बिना कोई लाभ के तो कोई महेनत करता नही. इसी बात को ध्यान में रखते हुवे पतंजली मुनि ने यहा पर यह बात बताई है की अगर कोई इनका पालन करे तो उसे विभूति या मिल शकती है. विभूतिया मतलब सिध्धि. योग से हमे जो कुछ भी प्राप्त होता है वह.

कैवल्य पाद:– लेकिन क्या इनसे हमे पूर्णता प्राप्त होगी नही हमे विभूति को छोड़ कर मतलब की शिध्धिऔ का जो मोह है वह त्याग कर अपने आप में एकाकार होना पड़ेगा. तबही हमे निर्वाण की स्थिती प्राप्त होगी मतलब की वह स्थिती जहा पर हम पूर्ण चेतना का अहेसास कर शके.

हमारे चित या मन के अलग अलग स्टेज है

अनुभव के यही stage को समजने की आवयश्कता है. क्योकि जब मन में चिंता होती है तब हमारा stage अलग होता है. जब हम कोई सोचमे डूबे होते है तो हमारी स्थिति कुछ अलग ही होती है. जैसी सोच वैसी ही हमारी स्थिति हो जाती है. क्योकि हम मन के साथ जुड़े हुवे है और मनतो बुरी तरह से जकड़ा हुवा है ? इसलिए एक भुला दुसरे को क्या राह दिखाए ? When the rescuer gets trapped, how will he save others ? यह सब कठिनाई है वह मन में हावी हो गई है की यह सब हमारी अपनी है ऐसा महसूस होने लगा है. लेकिन यथार्थरूप में यह सारी हमारी नहीं है. मन की है. मन के साथ निरंतर जुड़े रहने से यह बात बनी है. आप को यह question हो शकता है की मन से अलग हो जायेगे तो सोचेगा कौन ?

How to solve this problems ?

इनका हल क्या हो शकता है ? इनके लिए तो योग है !! योग सूत्र के प्रारम्भ ही यह बात बता दी गी है की योग का मुलभुत हेतु द्रष्टा को अर्थात हमारे सवरूप को हमे ही अनुभव करना है. बात जरा टेढ़ी लगती है लेकिन यही सच है. अगर कोई लम्बी अंधेरी गुफामें फंस गया हो तो उसे सभी जगहपे अँधेरा ही दिखाय देगा न !. उसे उस गुफा से निकालना ही समस्या का हल है.

अगर आप उसको थोडा बहुत light के उपकरण देगे तो वह ज्यादा काम नही आएगा. क्योकि उसे बहार की खुली हवा का आनद तो तब ही मिल शकता है जब उसे बहार निकाला जाये. हा एक बार बहार निकलने के बाद वह मार्ग जन जायेगा और कभी गुफामे तो कभी बहार आता जाता रहेगा. मन के इस भवंडर में फंस गये है हम. इसी उलझे हुवे मन से क्या सोचेगे हम. एकबार अपने आप का अनुभव हो जाये तब मालूम हो पायेगा की कैसा आनंद है यह !! सभी समस्या यह पर सहज लगेगी.

How will yoga be useful to us in this questions ?

योग सूत्र का अभ्यास हमें मन से भी उपर उन stage में ले जायेगा जहा हम निरंतर आनद का अनुभव् कर पायेगे. युग सूत्र का अर्थ समजकर उनका गान. उनके बारेमे बार सोचना. उनमे वर्णित यम, नियम, प्राणायाम, धारणा ध्यान का अभ्यास करने से धीरे धीरे मन की जो thickness कम होती जाएगी. मतलब की मन धीरे धीरे सूक्ष्म होता जायेगा. मन सूक्ष्म होते ही मन की वृतिओं की पकड कम होती जाएगी. gradually we can start our journey to constant pleasure !! हम दिव्यता की और आगे बढ़ पायेगे. यहा पर जैसे जैसे आगे बढ़ते जायेगे उतना लाभ अधिक होगा.

You may have doubt how this can happen?

यह possible इसलिए है क्योकि जो कुछभी उलझने, चिंता, भय, तनाव आदि जो कुछभी दुःख है उनका अनुभव करना तो मनसे होता है. मतलब की सुख का अनुभव मनसे, दुखका अनुभवभी मनसे. अगर हम दिव्यता से भरे इस विषय का अध्ययन करे तो बहुत सहज है की मन उनमे एकाग्र होगा और अपने आप ही मन में दिव्यता फेल जाएगी. मतलब की हमारा चित दिव्यता से भर जायेगा.

ऐसा होते ही जो कुछ पिछले संस्कार थे वह अपने आप दूर हो जायेगे. क्योकि मन की लाक्षणिकता यही है की वह एक साथ दो विचार नहीं कर शकता. अगर चिंता में है तो चिंतातुर रहेगा. अगर दिव्यता में है तो उनका अनुभव करेगा. क्रोध आये तो सबकुछ भूल जायेगा. उल्टा सीधा कुछभी बोलने लगेगा. एक बार इस विषय पर सोचने की शरुआत कर देनी चाहिए. फिर अपने आप यह सब होता चला जायेगा.

Best starting is very useful in this way.

अगर कोई यह कहे की जो मन विपरीत वृतिओं से मतलब की विपरीत सोच से युक्त हो वे ऐसा दिव्य सोचेगा ही नही मतलब की उन्ह राह पर जायेगा ही नही. तो फिर योग सूत्र से दिव्यता, निरंतर आनंद कैसे प्राप्त होगा. इनका उत्तर यह है की मनुष्यको कैसेभी करके एक बार अपना अभ्यास शरू कर देना है. कोईभी कार्य प्रारंभमें कठिन लगेगा लेकिन धीरे धीरे वह सहज हो जाएगा.

इसमेंभी एक ही नियम लागु होता है की जो कुछभी करो उनके संस्कार हमारे भीतर जमा होते है. इसलिए यही संस्कार फिर से हमे कार्य करनेकी प्रेरणा देता रहेगा. जिस प्रकार से बुरे कर्म के संस्कार एकत्रित होते है इस तरह से अच्छे कर्म के भी संस्कार हमारे subconscious mind में जमा होते है.


यही संस्कार हमे बार बार अच्छे कर्म करनेकी प्रेरणा देते रहते है. जिस तरह से अगर कोई सुबह पे रोजाना late उठ्त्ता है उनके भीतर इस प्रकार के संस्कार इकठे हो जाते है. उसे सुधार ने के लिए हमें एक बार थोदी महेनत करके सुबह पे जल्दी उठ जाना है फिर धीरे धीरे ये habit में परिवर्तित हो जाएगी और हमे सुबह पे उठने पर इतनी कठिनाई नहीं होगी जितनी पहले दिन हुई थी. इसी तरह से योग में भी है एक बार आनंद मिल गया फिर उसे धीरे धीरे पकड कर रखना है. इसमें जो कुछ दिक्कते आती है उन्हें तो साधना कहते है. योगमे उसे “तप” कहा जाता है.

Regular practice and study is very necessary in the path of Yoga.

Yes, this is true!! हम एक दिनमें सब कुछ नही पा शकते. योग कोई गोली नही है की पेटमे उतार दे और बात ख़त्म. यह एक अपने आप को विकसित करने वाली विद्या है. हमारे भीतर एक दिव्यता की circuit निर्माण होगी. हम निरंतर हमारे शरीर और मन एवं मन में पलने वाले फालतू विचार के साथ निरंतर जुड़े रहते है. उनमे से निकलकर हमारे भीतर की दिव्य चेतना में एकाकार होने के लिए हमे हमारे भीतर एक stage का निर्माण करना चाहिए. यही stage आपको भाविमे सबकुछ देगा सफलता, आनंद और दिव्यता. इसके लिए नियमित अभ्यास जरुरी है. अगर हम एक बार इसे करके छोड़ दे तो थोडा लाभ होगा लेकिन यह लाभ टिक नहीं पायेगा.

आखिरमे यहाँ पे लिखता हु की योग का अभ्यास करे, इस blog को पढ़ते रहे और दुसरो को भेजते रहे की उसे भी मुफ्त में ज्ञान और उनके साथ आनंद मिलाता रहे.

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