आज शिखने के लिए हमारा विषय है योग निद्रा. Yoga nidra योग निद्रा दो शब्द से बना हुवा है योग और निद्रा. योग का मतलब तो हम जानते है और निद्रा को भी कौन नही जानता. सरल भाषा में अगर व्याख्या करे तो कोई यह कह शकता है की निद्रा में भी योग का अनुसंधान योग निद्रा है.
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योग निद्रा के बारेमे जाने-To know about yoga nidra
मतलब की योग में एकाकार होते हुवे धीरे धीरे निद्रा में सजग रहना. किसी को ऐसा लगेगा की नीदं में जागना ये कैसे संभव है तो उनका उत्तर यह है की हम अपनी ही चेतना में रहे वह भी एक नींद है. लेकिन ये नींद अज्ञान वाली नही है. ज्ञान वाली नींद है. जागरूक रहकर निंद्रा का अनुभव योग निद्रा है. it is called yoga nidra.
आम तौर पर तो योग में ध्यान से समाधि की और जाया जा शकता है. लेकिन सामान्य साधको के लिए ये बहुत ही मुश्किल है. इसलिए प्रारंभिक तौर पर कोई योग निद्रा का अभ्यास कर शकता है. इनके बाद धीरे धीरे समाधि की और आगे बढ़ शकते है.
योग निद्रा का समय-योग निद्रा कब करे-what is the time of yoga nidra
योग निद्रा का समय देखे तो जब सोने से पूर्व और सुबह जागने के बाद ये की जा शकती है. आज कल के व्यस्त समय में लोगो के पास समय नही. अक्सर उनकी फरियाद रहती है की योगा अभ्यास कब करे ? तो उनका उकेल योग निद्रा है. क्योकि यह करने के लिए हमे कोई अलग समय निकालना नही पड़ता. जब सोने जाये तब एकदम शांत होकर ये क्रिया करनी है. इनके अलावा सुबह पर जब हम जागते है तब उनसे थोड़े समय पहले योग निद्रा का अभ्यास किया जा शकता है. मध्यरात्रि को अगर जाग जाये तो भी उसी समय योग निद्रा का अभ्यास कर शकते है. .
योग निद्रा किस तरह से की जाती है -How to do yoga nidra
यहा पर आखे मूंद कर कुछ भी न सोचके केवल सजग रहकर अपने शरीर के अलग अलग भागो पर ध्यान केन्द्रित करना. धीरे धीरे उसे भूलते जाना. इस तरह से चलते चलते अपनी सासों की और ध्यान ले जाना और अंतमे उसे भी भूल जाना.
एक एक अंग पर ध्यान केन्द्रित करना और उसे भूल कर चेतना में एकाकार होना
बस अपने होने का अहेसास ही करना है. यहा पर एक बात याद रहे की हमे किसीभी हाल में सोना नही और उलझनाभी नही. मतलब की दुसरे विचारो में एकरूप नही होना. बस सजगता को और चेतना के अभ्यास को स्थापित करने के लिए हमें धीरे धीरे एक एक अंग पर ध्यान केन्द्रित करते जाना. में उसे अनुभव करता हु ऐसा सोच कर अपने आप में एकाकार होने का प्रयास करना. धीरे धीरे अनुभव करता हु ये सोच भी छोड़ देनी है. केवल बस अपने ही स्वरूप में बहते जाना है.
योग निद्रा की विधि
वर्तमान जगत को भूलना और हमारी ही चेतना में एकाकार हो जाना इसका सिध्धांत है. इनके लिए हम guided meditation का उपयोग कर शकते है. मतलब की कोई अनुभवी गुरु हमे मार्गदर्शन देता रहे और हम बस उनके शब्दों में पूरी श्रध्धा से बहते जाये. कोई भी तर्क नही बस एकाकार होंते जाना यहा पर मुख्य है.
- एकदम हलके फुलके वस्त्र पहेनकर सोये. मतलब की वस्त्र ऐसे न होने चाहिए की बार बार हमारा ध्यान उस तरफ जाये. हमे बिन जरूरी उलझन कम करके अपने ही आप में धीरे धीरे एकरूप होना है.
- कोई भी योग क्रिया भरे पेट से मतलब की खाने के बाद तुरंत नही करनी चाहिए. इस तरह से देखे तो खाने के डेढ़ घंटे बाद से उनका समय योग्य रहेगा. मुलबंध, उड्डियान बंध जैसे बन्धो के अभ्यास में खाने के बाद तिन या चार घंटे बाद का समय योग्य होता है.
- लेकिन यहा पर हमे पेट को या प्राण को ज्यादा हिलाना नही है इसलिए डेढ़ या दो घंटे के बाद का समय अनुकूल रहेगा.
- बिस्तर पर एकदम शांत होकर अपनी body को एकदम ढीला छोड़ दे. अपने दोनों हाथ शरीर से थोड़े दूर रखे. दोनों हथेलियों को आकाश की और खुल्ली रखे. हाथो की अन्गुलिको कस कर न रखे मतलब ढीली छोड़ दे. अन्गुलिके बिच जगा रखे.
- दोनों पाव सीधे एकदूसरे से थोड़े दूर ऐसी स्थिती में रखे मन एकदम शांत.. कोई विचार नही.. विचार आए तो भी उनसे एकाकार नही होना. धीरे धीरे अपना ध्यान पैरो की एक अंगुली पर केन्द्रित की जिए. उसे हिलाए और अंगुलिका होने का अहेसास कीजिए.
- इस तरह उस पर ध्यान केन्द्रित कीजिए. शरीर के बाकि हिस्से का ध्यान भूल जाये. उस के बाद धीर धीरे पैर के तलवे फिर दोनों पीडी, घुटन, टखना, जांघ, हाथ की अलग अलग अंगुली, कोणी, हाथ के पंजे इस तरह से ऐक के बाद एक के साथ एकाकार होइये और उनसे मुक्त भी होइए.
- शरीर के जो भी भाग पर आपने ध्यान केन्द्रित किया उने relax करते जाइये मतलब की ये शांत हो रहा. उसे शांति मिल गई है. आनंद मिल रहा है. ऐसा प्रत्येक अंग के बारेमे सोचते जाइये. और उनसे मुक्त भी होते जाइये.
- मतलब की में उनसे अलग चेतना हु ऐसा सोचते जाइये. किसी भी सोच में उलझिए नही. बस शांत होते जाइये. शांत होते जाइये. ऐसा करते करते जब शरीर के सारे अंगो को शांत कर दे. फिर बारी आती है अपने साँस की. उन पर ध्यान केन्द्रित की जिए. उसे बस अनुभव करते रहे कुछ भी अलग सोचे नही.
- में योग निद्रा का अभ्यास कर रहा हु ऐसा भी न सोचे वरना तुरंत ही मन उस विचार में डूबने लगेगा और ध्यान टूट जायेगा. बस एकदम शांत.. शांत और शांत..
- अंतमे श्वास से भी ध्यान हटाके अपने आप में एकाकार होते जाये..होते जाये.. कुछ भी न सोचे.. केवल आनंद में एकरूप हो जाये.. फिर भी जागते रहे.
- में जागता हु ऐसा भी न सोचे बस अपनी चेतना में बहते जाइये. यहा पर ध्यान, ध्याता और ध्येय की त्रिपुटी एक होती जाएगी..आप आनंद में कब सो जायेगे पता ही नही चलेगा. अगर सब कुछ ठीक रहा तो पूरी रात आप दिव्य चेतना में एकाकार हो शकते है. ये जितना गहरा उतना लाभ ज्यादा
योग निंद्रा के लाभ-योग निद्रा से कौन कौन से फायदे होते है-Advantage of yoga nidra
- अगर कोई नियमित रूप से योगनिद्रा का अभ्यास करता रहे तो उसे दिव्यता की अनुभूति जल्दी से हो शकती है. साधक योग में ज्यादा प्रगति कर शकता है. यह इनका अध्यात्मिक रहस्य है.
- योग निद्रा से सजगता प्राप्त होती है. प्रथम हम एकाग्र होते है और फिर धीरे धीरे शरीर के उन भागो से भी पर हो के आनंद में एकाकार होते जाते है. इसतरह से एकाग्रता बढती है.
- मन शांत होता है ताजगी और आनंद का अनुभव होता है. इसलिए जो अस्तव्यस्त मन से होने वाली बीमरी जैसे बीपी, तनाव, अनिद्रा, मन्दाग्नि, पाचन तंत्र में गरबड आदि अनेक बीमारी में राहत मिलती है.
- योग के अभ्यास में हमारा शरीर और मन बलवान हो जाता है. इसलिए कोई भी रोगों से लड़ने की क्षमता उनमे बढ़ जाती है.
- इसलिए ध्यान हो या आसन या प्राणायाम ये सभी क्रिया हमारे अस्तित्व को निखारता है.
- अलग दर्दो में भी योग निद्रा से राहत मिलती है.
- किसी की नर्व सिस्टम बिगड़ गई हो जीवन नीरस लगने लगा हो या बैचेनी. घुटन, चिंता, चिड चिड़ापन, गुस्से हो जाना, मन की फिजूल की बडबडाट आदि अनेक बीमारी में राहत मिलती है.
- जीवन ज्यादा आनंदित लगने लगता है.
- समय का फायदा भी यहा बड़ा ही उपयोगी है. दिन में किसी के पास समय नही है इसलिए रात्री में सोते समय ये योग निद्रा का अभ्यास किया जाता है.
- यहा पर ये बात करने से कोई लाभ नही साधक अगर कुछ भी सोचे बिना बस धीरे धीरे पूर्ण श्रध्धा से करता जाये फिर वह अपने आप समज जायेगा की इनसे क्या लाभ होते है. .
योग निंद्रा का अध्यात्म-Secret of yoga about yoga nidra
योग अनेक रहस्यों से भरा हुवा है.अगर कोई उनके सिध्धांतो का पालन नियमितरूप से करता रहे. तो काफी सारी मुश्केलिया दूर हो जाती है. उतना ही नही दिव्यता का बहाव भी होता है. उसी बात को लेकर यह ब्लॉग है. योग निद्रा को जानने के लिए हमे तिन अवस्था का अभ्यास करना होगा. क्योकि हमे जो स्थिती में जाने के लिए प्रयास करना है वह तुरीय है. उसके बारेमे हम थोडा बहुत जानते हो तो ये विधि में हमे बड़ा आनंद आयेगा और लाभ भी होगा.
जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति तिन अवस्था
सामान्य तौर पर देखे तो हमे जो अवस्था का अनुभव होता है वह जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति है.ये ज्ञान के शब्द है लेकिन यहा पर हमे थोडा बहुत जानना होगा. तब ही विषय वस्तु हमे ज्यादा समज में आ जाएगी. अगर कोई हमे ध्यान करने को कहे, योग करने को कहे तो ये सब क्यों करना है ?
उनकी समज अगर हम पा ले तो मन की फ़िज़ूल की उछल कूद का अंत आ शकता है. समजकर जो कार्य करते है उनमे हमारा ध्यान ज्यादा होता है. यहा पर अवस्था का अर्थ है हमे जो हमारे अपने होने का अहेसास होता है वह. ये अहेसास किस के आधार पर होता है.
जाग्रत
जाग्रत में हमे अपने शरीर, मन और उनके विचार के आधार पर अपने होने का अहेसास होता है. हम चलते है, हम फिरते है, हम बोलते है, हम किसी के बारेमे सोचते है, लड़ाई करते है, विषयों का भोग शरीर के साथ और मन के द्वारा करते है. ये सब में हमे अपने शरीर और वर्तमान जगत का अनुभव होता है.
स्वप्नन
यहा पर हमे हमारा और जगत का दोनों का अहेसास होता है. वर्तमान जगत में हम रहते है. वह हमारे मन द्वारा बनाया गया Platform है. जब हम सो जाते है तब हमे स्वप्न का अहेसास होता है. यह स्वप्न में सब कुछ सच लगता है. जैसे हमारे साथ घटित होता हो, फिर भी यहा पर हम वर्तमान शरीर और इन्द्रिय का भान भूल जाते है.
कोई नई दुनिया जहा वर्तमान समय का भानभी भूल जाये. स्वप्नभी अपने आपमें एक रहस्यमई है. स्वप्न के example पर वेदांत का ज्ञान स्थापित किया जाता है. स्वप्न में हमे सब कुछ सच लगता है जैसे हम वहा है. लेकिन फिरभी ये सच नही है. मतलब की जैसे ही जागते है की सब कुछ खत्म हो जाता है.
यहा पर हम यह समज शकते है की स्वप्न में जाग्रत समाप्त हो जाता है और जाग्रत में स्वप्न. इस तरह देखे तो दौनो मिथ्या है. क्योकि जैसे स्वप्न में जाग्रत सच नही वैसे जाग्रत में सवप्न. व्यक्ति जब मर जाता है तब यह जाग्रत वाला स्वप्नभी मानो पूरा हो जाता है.
सुषुप्ति
इस तरह ये भी एक प्रकार का स्वप्नही है. अब जो अवस्था आती है वह है सुषुप्ति की. सुसुप्ति मतलब गाढ़ निद्रा. जब कोई सो जाता है. तब उसे अपने शरीर का मन का अलग होने का या जगत का भी अहेसास नही होता. वह मन के साथ रहकर कोई अलग स्वप्न मतलब की मनघडत द्रश्यभी नही देखता. बस कुछ अलग अनुभव न करके अपने होने के अज्ञान में रहकर अनुभव करता है.
अज्ञान इसलिए की उस समय उसे मेने कुछ न जाना ऐसा अहेसास रहता है. वह अपने आप को जानता है लेकिन कुछ नही जानता उस स्वरूप में. ये तिन अवस्था जो हर जिव को अनुभवमें आती है. यहा पर हम अपनी चेतना का उपयोग करके अन्य स्थिती को जानते है और उसमे ही रहते है.
तुरीय
जाग्रत में हम तन, मन और उनके विचारो में. स्वप्न में देह से पर केवल मन के विचारोमें एकरूप. जब की सुषुप्ति में नही जानता ऐसा अज्ञान को जानने में करते है. लेकिन इस तिन से जो उपर की स्थिती है वह है तुरीय. ये सब से निराली है.
जहा हम अपने आत्म स्वरूप को चेतन्यमई शरीर को जानते है. अनुभव करते है. हालाकि ये सहजरूप से नही होता. यहा पर ही साधना की बात आती है..हमारा पूरा ब्लॉग इस दिव्यज्ञान से भरपूर है. यही स्थिती का अनुभव ध्यान में होता है. लेकिन वह अल्प मात्रा में है.
धीरे धीरे यह अनुभव बढ़ता जाता है जब पूर्ण चेतना का ज्ञान होता है तो वह समाधि है. यह दिव्य स्थिती है. उनके लिए जो प्रयास करते है उनमे से एक प्रयास का नाम योगनिद्रा yoga nidra है. यह थोड़ी बिचबाली स्थिती है जहा सुषुप्ति और तुरीय दोनों आमने सामने है.