ज्ञान प्राप्ति की इस शृखला में सभी साधक मित्रों का स्वागत है. जीवन में साधना जरूरी है क्योकि इनसे उपर के स्टेज तक पहोचा जा शकता है. जहा पर आनंद और कार्य दोनों सहज हो पाए. निरंतर चेतना का एक अविर्भाव होने के लिए नियमित रूप से साधना करनी चाहिए. ये धीरे धीरे स्थिति को मजबूत करता जायेगा.
भीतर की चेतना को develop करना है. चेतना है लेकिन उनका अनुभव किसी माध्यम से हो रहा है. इनके बजाय उनका स्वतः अनुभव करना है.
बिचमे एक सुन्दर बात ले लेते है एक साधक ने प्रश्न पूछा था की आत्मा और चेतना में क्या अंतर है ?
बात बहुत ही सरल रूप से समझे तो हमारी चेतना यह इलेक्ट्रिक की तरह है और जो बल्ब में है वह आत्मा है वास्तवमे यह भी एक करंट ही है लेकिन बल्ब नामक घेरे में है !! इस तरह से जब ये बोडी नामक घेरे से घिरती है तब अलग थलग दिखती है. इनसे आगे जब मन के घेरे में घिरती है तो अपने को एक अलग स्थिति मानती है तब वो जीव कहलाती है.
प्राण के स्तर पर मन के स्तर पर शरीर के स्तर पर धीरे-धीरे साधना करते करते एक स्थिति बनाने की कोशिश करते हैं. जिसे चेतस स्थिति कहते हैं. वहां आनंद निरंतर हो और हम जो हमारा शरीर है, इंद्रिय है उन्हें एक साधन के रूप में देखे ना की यह हमारे मलिक है ऐसा समझे !!
मतलब मन के गुलाम बनके नही लेकिन उनके मालिक बनके रहे !!
आज का हमारा बहुत ही महत्वपूर्ण सब्जेक्ट है विज्ञान भैरव तंत्र से संप्रदाय भगवान शिव योग के गुरु योग की आधारशिला योग द्वारा परमात्मा की अनुभूति शाश्वत सत्य के अनुभूति बस सब कुछ थोड़े बहुत इसमें डिफरेंस है लेकिन वह डिफरेंस केवल एक माध्यम की वजह आधार ले रहे हैं तो samparknath और संप्रभुता मिली हो लेकिन जब तक हम इस जगत के विचारों में घिरे तब तक यह जीव है जब वो अपने आप को जीव ब्रह्म की एकता सिद्धांत का एक सुर जब यह सब झूठे छूटेगा मैन से मतलब यह मैन मैं नहीं हूं धीरे-धीरे वो शांत होता जाएगा
एक रचना एक विधि निर्गुण ब्रह्म की उपासना में कोई विधि नहीं होती आप यह भी का सकते हैं लेकिन जब तक हम इस घेरे में उनसे इतने गिरे हुए हैं तब उनसे ऊपर उठने के लिए एक पढ़ती की आवश्यकता होती है क्योंकि तुरंत हमारी जो आदत है ना वो बदलने वाले नहीं है मैन का भटकाव है बार-बार अलग-अलग प्रकार के विचार आना है राग ड्रेस कम क्रोध जो कुछ भी है बीच बीच में संतोष भी ए जाता है विश्वास नहीं होता साधना में यह सब बहुत सारी बात है
और आजकल आनंद राज जो है कुछ अच्छा नहीं महसूस होता यह सब है सब आजकल तो बहुत अलग-अलग प्रकार के सब्जेक्ट मैन के स्टार पर बौद्धिक स्टार पर सामाजिक स्टार पर बहुत सारे अलग-अलग प्रकार की समस्याएं हमारे सामने आकर एक चट्टान की तरह खड़ी रहती है और उन्हें निपटने के लिए इस साधना रामबन इलाज अपने आप को बेहतर बनाएं हम उनसे लड़ पाए हम उनमें स्थिर हो पाए अगर चीरता नहीं तुमसे लड़ नहीं पाएगी क्योंकि अगर कोई भीतर से आसान है तो वो बाहर से बाहर आई हुई समस्या का ठीक तरह से निराकरण नहीं कर पाए वह भीतर से टूट
जाए या सोचते सोचते ही आधा थक हुए उनसे ज्यादा उनके साथ सोचने लगते हैं तो यह सब मिटाने के लिए अलग-अलग प्रकार के शास्त्र विज्ञान बेरोज तंत्र भी एक ऐसा शास्त्र अद्भुत जहां हम ब्रह्म का जितना का हमारे भैरव स्थिति का एक स्थिति बनाने की कोशिश यहां पर
उसे स्थिति में आप आनंद में रह सब आप अपने स्वरूप में रह सकते भगवान कहते हैं यह मेरा स्वरूप भैरों से माताजी मैन पार्वती महादेव पूछती है की आपका स्वरूप क्या है तो भगवान उसे बताते की यह बड़ा और बड़ा ये जो कल जो पूरा जगत है व्याप्त है उसमें जो 7 सत्य है जो बोध स्वरूप है वह मैं हूं और यह जो आपको दिख रहा है वह मेरी माया है तो यह बोध स्वरूप को प्राप्त करने के लिए अलग-अलग प्रकार की धरना यहां मैन को स्थिर करें और उसे सूक्ष्म कर दे
तो आप उसे स्थिति को सोचता से प्राप्त कर सकेंगे ऐसी बात विज्ञान भैरव तंत्र में 112 विधि कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो इनमें से कोई एक विधि ना कर पाए जिससे जो पसंद करना अब यहां पर एक बहुत ही सुंदर बात वर्णित की गई है तीन बार महत्वपूर्ण है सबसे पहले जैसे यह प्राणायाम के बारे में कुछ मालूम ही नहीं पूरक जब सांस लेते आना प्राण वायु भीतर जाए मिट जाए तब थोड़ी क्षण के लिए उन्हें रोकना चाहिए प्राण वायु अपन तत्व देखो प्राण और अपन दोनों ब्रह्म रुद्र से लेकर हृदय तक जो पूरा विस्तार है हृदय संसद और ऊपर का dwadasaant उनके बीच प्राण चलता है और नीचे पैन चलता तो जब हम सांस बाहर निकलते हैं.
तब प्राण वायु अपनत्व को प्राप्त करता है और जब बाहर से सांस भीतर आती है एक बहुत ही सरल भाषा में अगर आप समझे तो प्राण वायु जब हम भीतर लेते हैं तब जो नीचे की नाभि से नीचे जो अपन वायु का स्थान है उनकी संधि होती है जब पूरक करते हैं तब पूरे चक्र एक शक्ति से बढ़ जाते हैं जैसे सांस बार निकलती ऊपर आता है और जब प्राण लेते हैं इस प्रकार के आठ प्राणायाम बनते सांस ली सांस छोड़ी सांस रोकी बाहर सांस रुकी भीतर सांस रोकी सांस लेने के बाद रुकी सांस निकलने के बाद इस तरह से अलग-अलग प्रकार की आठ प्रकार की पढ़ती प्राणायाम में होती है मुख्य बात क्या है की जब हम सांस लेते हैं तब उसे प्राण पूर्व कहते हैं मित्र रोकना है कुंभ उसे antkumbh कहा गया है और जब सांस बाहर निकलती हैं
और जब बाहर रोकते मैन लीजिए आपने सांस बाहर निकल इस तरह से फिर थोड़ी क्षण के लिए आप कोई सांस नहीं लेते भीतर नहीं आती तो उसे स्थिति वही कुंभ है बहारों रोक दी और जब सांस लेते तो भीतर स्टोर होते हैं मतलब भीतर रोकते बाहर रुकते भीतर रुकती है तो दोनों में दोनों में जो स्थिति है वह शांता नाम की स्थिति है वह स्थिति जैसे-जैसे डेवलप करते जाएंगे आपकी बाहरी स्थिति गड्ढा होती जाएगी ऐसी बात यहां पर है दोनों पर पूरक और रेचक पूरक के समय पूरक लेने के बाद kunvita कुनबा री चिता वापी puritarikshak के बीच की स्थिति बनती है शांता नाम अशोक प्रकाश शांता नाम की जो शक्ति है प्रैक्टिस करके देखें प्राण को एक शांत स्थान पर बैठे पहले तो रूटिंग बेस पर हम प्राणायाम के बारे में जब भी कहते हैं तब एक शांत स्थान की बात करेगी रीड की हड्डी को सीधी रखें अगर आप नहीं बैठ पाते तो सूखे पर कुर्सी पर बैठ सकते हैं एकदम मैन को शांत करें [संगीत]
गहरी सांस ले बिना हाथ अपने हाथों को दूर रखें इस तरह से हाथ नहीं करना है देखो यह बहुत महत्वपूर्ण है जब आप गौरी ध्यान में उतरने के लिए कोई प्राणायाम करते ना तब आपको नाक से छूना नहीं हाथ को दूरी इस तरह से ज्ञान मुद्रा में रख सकते इस तरह से इस तरह भी रख सकते हैं इस तरह से भी रख सकते हैं मुद्रा अनेक आती है उनमें से कोई एक मुद्रा में रख सकते हैं या आप शांति से ऐसे हाथ रख के बैठ सकते हैं फिर प्राण दीदी धीरे-धीरे जैसे पीते हैं कोई रेस्पों कर देना उसे तरह से धीरे-धीरे प्राण को बितर जाने में भीतर जाते समय अलग-अलग प्रकार के हमारे जो चक्र है वह धीरे-धीरे प्रफुल्लित हो गए भीतर प्राण जाए एक जितना कानून होता है एक शांति एक सूक्ष्मता एक खालीपन shunyataon से कहते हैं
एक बहुत बड़ा समुद्र है उसमें का तब ये जगत उत्पन्न होता है यह मैन ले यह जो उनका व्यास है वह शांत हो जाता है तब समुद्र रहता है उसे तरह से चेतना है चेतना में यह मैन उत्पन्न हुआ बुद्धि उत्पन्न हुई अलग-अलग शरीर के स्टार पर हमारे जो बुद्धि है विचार है यह सब उत्पन्न हुए तब हम जब कुंभक स्थिति में है
तब मैन शांत हो जाता है अपने आप जैसे-जैसे प्रैक्टिस करते जाएं इस बात की वैसे-वैसे आपको समझ में ए जाएगा की हान इस तरह से आनंद के अनुभूति हो सकती है प्रैक्टिस की बात है यह कोई ऐसी बात नहीं की आज कर रही और हो गई आपको लगातार तीन चार महीने तक धीरे-धीरे प्रैक्टिस करनी चाहिए और जब सांस को बाहर निकल देते हैं तब वही कुंभ को उत्पन्न होता है
वैसी स्थिति जब हम सांस को भीतर रोकते तब उत्पन्न होती है ऐसी स्थिति बाहर उत्पन्न सास को बाहर निकल दे दोनों स्थिति में हम ध्यान कर सकते हैं 3 पढ़ती हमने समझा दी पहली पढ़ती हमने क्या समझे जब एक सूक्ष्मता उत्पन्न होती है सांस ले फिर सांस निकलेंगे वो स्थिति हमने इनके पहले वीडियो में समझा दी है और आज जो स्थिति है वो एक रोकने के लिए प्राण जब रुके तब संत नाम की स्थिति मतलब एक शक्ति उत्पन्न होती है
वो हमें क्या करती है तब पहुंचती है
पुराने समय में जो मारे रूसी मुनि द ना वह लंबे समय तक इस तरह की साधना करते करते ही ब्रह्म तत्व तक पहुंच जाते हैं देखो फंडा क्या है फंडा इतना है की मैन है ना इतना चंचल है की मैन को पकड़ने जाए ना तो हाथ में नहीं आएगा
तो इसीलिए प्राण को पकड़ने की बात यहां कारी गई है अगर प्राण को और मैन को एक साथ क्योंकि सास तो चलती रहती है सुबह से लेकर शाम तक रात को आपको जब भी साधना करनी है तब साफ है ना वह तो आपके साथ ही है है वह कहीं नहीं जाती क्योंकि बिना सांस लिए तू व्यक्ति जीवनी सकता मार जाता है तो हम जिंदा हैं उनका मतलब यह हुआ की सांसो सांस की जो प्रक्रिया है विधि वह हमारी शुरू ही रहे आप ऑफिस में तब यह होगा अब घर में तबीयत आपकी जो प्रोफेशनल लाइफ में है तभी होगा
इसमें ऐसी बात आती है चलते-फिरते भी आप ध्यान कर सकते हैं ऐसी बात भी आएगी और आप संगीत पर ध्यान करेंगे ऐसी बात भी आएगी विज्ञान भैरव तंत्र में सभी प्रकार की ज्ञान की पढ़ती होनी की गई है
मानता की कोई एक व्यक्ति गुफा में चला जाए फिर ध्यान करें तो ही ज्ञान हो ऐसी बात नहीं शरीर के लेवल पर मैन के लेवल पर जो-जो स्थितियों आती है उसे स्थिति में एकदम स्थिर हो जाए और जैसे-जैसे थू स्थिर होते जाए यह मैन सूक्ष्म होता जाएगा मंच सूक्ष्म होता जाएगा और चेतना का अमीर भाव हमें प्रगति होता जाएगा यह बात है
अब एक दूसरी महत्वपूर्ण बात जो है उनके साथ बता दे की जब कुंभी अवस्था होती है कुंभ मतलब सांस अंदर हम रोकते हैं तब क्या बहुत ही जरूरी है जल्दी कर दे जल्दी कर दे साइकिल की तरह चलनी चाहिए क्योंकि अगर आप ज्यादा सांसों के तो अगली साइकिल जो है ना मतलब फिर से जब हम सांस लेंगे और रुकेंगे वो जल्दी हो जाएगी ऐसी बातें
होना चाहिए एक santulitta होनी चाहिए सांस ली रोटी छोड़ी वारो की ये तीनों पढ़ती में एक samanjasta चलते फिरते भी अमीर कर सकते हैं करने की जरूरत है एक बार चित्रा स्थिति के द्वार पर हम पहुंच जाएं फिर तो आप अपने आप उपयोग पर जाएं आनंद के द्वार पर इनके पहले वीडियो में हमने विधारा देखी थी की यहां पर हमें ज्योति देखें
देखो अलग-अलग धरना में अलग-अलग प्रकार के हमारे जो अंग है उनका उपयोग होता है मतलब मैन का प्राण का इस तरफ तो यहां मैन से विधान करने देखना है यहां पर ज्योति है यहां पर प्राण पर ध्यान लगाना है बहुत जरूरी है हमें देखना चाहिए
विटनेस की तरह प्राण लेते प्राण छोड़ते प्राण रुकते इस सब कुछ हम हमें मालूम है की हमने सब करते हैं लेकिन एक दूसरी बात है की हमें केवल अपना स्वरूप भूल के उन्हें समय मिलने हम अपना स्वरूप में रहकर उसे समय और दूसरी यह भी बात है की मैन को इधर-उधर भड़काने ना दे जैसे ही मैन इधर-उधर फैट गए आप फिर से यह सब एकदम निष्ठा से एकदम पूरा विश्वास से क्रिया करें देखो यहां इसलिए पुराने समय में गुरु जो है उन पर बहुत ही विश्वास रखकर साधना की जाती थी और क्यों क्योंकि भटकाव जब तक है ना तब तक साधना सर नहीं होते
हमारी बहुत ऐसे साधक भी है जो एकदम निष्ठा से साधना कर रहे और कहते भी है की हम इस साधना में सफल होते जा रहे हैं धीरे-धीरे सफलता मिलेगी यहां कोई जल्दी नहीं है भगवान जितना समय हमें चाहिए उतना समय देगी
भगवान तो वहां तक कहते भगवान गीता में की एक जन्म में ना हो तो दूसरे जन्म में युग bhrashtaat मा के सिद्धांत पर यहां कोई जल्दी नहीं शांति से हमारा जीवन जिएंगे और साधना करते रहे कोई भी अड़चन नहीं है साधना हमारे व्यक्तित्व विकास के लिए हमारी आत्मा उन्नति के लिए है यह बात बहुत महत्वपूर्ण अच्छा हो गया ऐसी बात नहीं अपने आप को डिवेलप करना शांत रखना मोर फोकस मोर कंसंट्रेशन हम अपने कार्य में ठीक तरह से लग पाए ऐसी बहुत सारी मिलेगी
इनके बारे में कोई बहुत चर्चा नहीं करता क्योंकि वह अपने आप मिलती है क्योंकि अगर आपका मैन जितना ही इतनी बलवान हो जाए तो बाकी जो सभी कम है वो आसान हो जाए सवाल उठेगा तो हान होता है क्यों क्योंकि जब भी दस्ते होती है सांता नाम की स्थिति उत्पन्न होती है भीतर तब जो प्राण है ना वह धीरे-धीरे धीरे-धीरे
है तो कुंडली शक्ति का स्थान कहां है मूलाधार में मूलाधार कहां आया सांता नाम की स्थिति जाए और पैन के साथ उनका मिलन होता जाए एक प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है है और वही ऊर्जा कुंडलिनी शक्ति को भी जगती है ताकि साधक में आएगी जैसे कुंडली शक्ति जागृत हो शरीर में इस प्रकार की शक्ति महसूस होने लगी तुरंतयह होने लगती है तो इसीलिए ब्रह्मचर्य का पालन यह सब करने के लिए साधना में कहना पड़ता है दूसरी बात कुछ नहीं सकती जो हमारी है उनका
चेतना के साथ जैसे-जैसे पॉजिटिव रूप में देखो दो प्रकार की है
उनका भवन चमकता जाएगा तब आप हमें एक प्रकार की चेतना उत्पन्न होगी और जितना का अनुभव भी आपको होगा लेकिन उसी समय जो भी विचार आपके मैन में आएगा अगर उनके साथ आप एक अप हो गए तो पुरी शक्ति धीरे-धीरे धीरे-धीरे
अगर आपको क्रिएटिव कम में लगे जीवन के अच्छा कम में लगे तो कोई तकलीफ नहीं क्योंकि आप में जो शक्ति उत्पन्न हुई वो जब आप साधना नहीं करते तब भी आप कम करते तो उनका डायवर्शन कहां हो जाएगा
भी कम करते हैं तो आपकी जो पुरी शक्ति और ध्यान में धीरे-धीरे आपको भीतर डिवेलप करने में लग जाए यह भी है ऐसी बात नहीं कम है अभी संसार में व्यस्त है उनके लिए सब होता है और जो साधना में व्यस्त है उनके लिए साधना की शक्ति को बढ़ता है कहीं पर भी यह शक्ति उसे होगी इसलिए कुंडली योग में ऐसा बार-बार कहा जाता है अब आप देखना बहुत सारे वीडियो में देखना की कुंडली योग में ऐसा कहा गया है की भाई तुम यह साधना करते हो अगर थोड़ा बिना संभाले तो नुकसान हो नुकसान होने की संभावना इसलिए होती है की कोई नई बात नहीं अगर आप भीतर से सुंदर है आपको अपना गेम मालूम है तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं लेकिन अगर अलग-अलग विषयों पर भी ज्यादा लगाव है मतलब बहुत लगाव है ज्यादा मतलब जो खान-पान में तुम जो प्रमाण मात्रा ये सब क्रियाएं तो कुछ दिक्कत नहीं क्योंकि खाने के लिए हमें जीवन जीने के लिए लेकिन ज्यादा मात्रा में उनके साथ अत्यंत लगा हुआ है तो यह शक्ति उत्पन्न होती है वहां चलती जाए ये बात है दूसरी बात कुछ नहीं है तो kumbhita नाम की शक्ति शांता नाम की शक्ति धीरे-धीरे शक्ति को प्रकट करेगी है और उसने एक ग्रुप होने की कोशिश करें तो आज का वीडियो यहां समाप्त करते हैं फिर एक धरना के साथ या कोई अलग ज्ञान के विषय के साथ मिलेंगे