प्रिय वाचको ! ये लम्बा उपन्यास है. इसमें बहुत रहस्यमई और साथ में ज्ञानप्रद बात वर्णित की गई है. इसमें कई सारे पात्र है और उनकी अलग अलग विशेषताभी है. विराक्ष किस तरह से अन्तरिक्ष यान को लाता है और सभी जीवो को उपर के स्टेज में ले जाता है उनका खुबसुरत वर्णन किया गया है.
“अन्तरिक्ष यान” ऐसी स्टोरी है जो शुरुमे सामान्य, सस्पेंस और धीरे धीरे गहन होती जाएगी है. हालाकि वाचक का इंटरेस्ट अंत समय तक रहेगा इस तरह इसे वर्णित किया गया है. साथ में सरल हिंदी में है.
आप लोग को शब्द यात्रा में बहने के लिए आमंत्रित किया जाता है. बाद में इनकी एक बुक भी प्रकाशित की जाएगी. लेकिन फिल हाल ये अलग अलग ब्लॉग पोस्ट के रुपमे होगी हरेक पोस्ट एक वृतांत (episode) होगा.
एक क्रमांकन भी तैयार कीया जायेगा ताकी वाचक जहा से छोड़ा हो वहा से आगे जा शके. इनके episode एक दुसरे के साथ जुड़े हुवे है इसलिए पूरी स्टोरी समज ने के लिए सभी पढना जरूरी है.
- Episode-1 विराक्ष के जन्म पूर्व की घटना क्या हुवा उस समय ओबोरॉय के साथ ?
- Episode-2 दीवान खंड में छोटा विराक्ष, सावित्री, ओबोरॉय बाते कर रहे थे
Table of Contents
पूर्वांश
Episode-1 क्या हुवा उस समय ओबोरॉय के साथ ?
सुनसान रास्ता.. चारो और सन्नाटा.. कार धीरे धीरे जा रही थी..थोड़े थोड़े समय में बारिश की बौछार.. बिजली की गडगडाट की आवाज..बार बार होती लाइट जैसे कोई फोटोग्राफर अपना कसब अजमाता हो !! अभी रास्ता ७० किलो मीटर का था.. बुरे फंसे थे ओबोरॉय और उनका फेमिली.. उनकी वाइफ प्रेगनेट थी..समय नजदीक था.. कब बेबी का जन्म हो पता नही !! उपर से बारिस और निचे अँधेरा.. रास्ता कुछ दिखाय न दे..
फिर भी चल पड़े ‘ मगदड ‘ गाव जहा सावित्री के माता पिता रहते थे..बार बार बच्चो को खोते रहनेसे इस बार वह उसे अपने माइके छोड़ आना चाहते थे ओबोरॉय.. कार में दो औरते, एक ड्राइवर और खुद ओबोरॉय दुबे थे.. हालाकि कार बड़ी थी लेकिन बारिस और तेज हवा के सामने खिलौना थी.. बिच जंगल का रास्ता.. चारो और पहाड़ी..चारो और सन्नाटा…
कुछ भी दिखाय नही पड़ता था..कार की हेड लाइट और कभी कभी पहाड़ पर खड़े किये गये छोटे छोटे छोटे झोपड़े जैसे मकान के लाइट के सिवा घनघोर अँधेरा था… बिच बिच में पानी से भरे छोटे छोटे गड्डे कार को भिगो देते थे.. कभी कभी मेढक की टर टर आवाज सन्नाटे को छेड़ देती थी..अँधेरा अपनी आगोसी में सबकुछ निगलने को जैसे तैयार था..
सरला : गाड़ी का शीशा बंध कर दो बारिश बार बार तेज हो रही है.. हम भीग जायेगे…
ओंबोरॉय : अब कितना दूर होगा !! क्या हम पहोच पायेगे इनकी तबियत बहुत नाजुक है जरा कार धीरे चलाओ..
रमेश (ड्राइवर): क्या साहब आप भी !! अभी बहुत दूर है ऐसे कार बेल गाड़ी की तरह चलायेगे तो सुबह तक नही पहोच पायेगे..रास्ता भी सुम सुम है .
एक जोर का झटका..कार के पहियों की आवाज आती है..कार रोक देता है.. अरे !! लगता है आगे थोडा ज्यादा पानी भरा है..
ओबोरॉय : अरे क्या हुवा ? क्यों रोक दी…लगता है कुछ हुवा !!
सावित्री : मुझसे नहीं सहा जाता…यही रुक जाइये और कितना आगे है..अरे में क्या कहती हु.. मेरा बच्चा जिन्दा तो रहेगाना.. अरे इस बार ये मरा तो में भी मर जाऊगी
ओबोरॉय की ये चोथी संतानथी कोई भी बच्चा जिन्दा नही रहता. कोई पैदा हो कर तो कोई पहले से ही इस दुनिया छोड़ देता. अब तो ओबोरॉय भी गभरा रहे थे की अबकी बार किस्मत क्या खेल खेलेगा. क्या भगवान उनकी सुनेगे ?
” मुझे लगता है की हमे कार को यही छोड़कर कोई सहारा ढूढ लेना चाहिए !! ऐसे कार चलाते रहे और कार कई फंस गई तो हम मुसीबत में आ शकते है !!” ड्राइवर ने डरते हुवे कहा.
सरला तुम यहा रुको. सावित्री का ध्यान रखना में और रमेश जाते है इधर उधर. हो शकता है.. की हमे कोई ठहराव मिल जाये ! रमेश की बात में दम है. सावित्री की तबियत भी नाजुक है और कोई उल्टा सीधा हो गया तो !!
मेने कहा था आपको ! अविनाश को साथ ले ले ! आपके काम आ शकता ! लेकिन आप क्या हमारी सुनते हो. मन मानी करनी है !! अब कहा ढूढेगे इस जंगल में आसियाना !! अरे दर्द के मारे जान निकल जा रही है !! और आपको बाते सूझ रही है..जो भी करना है जल्दी कीजिए. वक्त बहुत कम है.
तुम मुझको ही दोष दोगी मुझे पता है.. औरतो की यही मुसीबत है. सभी बात पर हमारा ही दोष निकलकर आता है. और अविनाश की बात ही जाने दो. तुम्हारा भाई कुछ काम का नही. जब भी फोन करो न जाने कहा छिपा रहता है. उठाता ही नही. घूम रहा होगा कही. हां मेने कहाथा ! लेकिन जनाब फोन उठाये तो न !!
अरे !! बस भी करो फिर आप आपसमें लड़ने लगे !! भैया पहले आप जाओ जल्दी !! ये वक्त बहस करने का नही है भाभी की हालत ख़राब है. हा..हा.. जाता हु भाभी की लाडली.. कभी भैया की और देखा करो.. थोडा हँसते हुवे ओबोरॉय और रमेश निकल पड़ते है उस घनघोर जंगल और तूफानी रात में जैसे कोई डूबता हुवा तिनका ढूंढने निकल पड़ा हो ! ..
रमेश में क्या कहता हु !! तुम इस तरफ ढूढो में उस तरफ जाता हु. मोबाईल तो ओंन है न. ? हां ओन तो है.. लेकिन यहा सिग्नल विक है. अच्छा !! फिर भी कोशिश करना हो शके कनेक्ट हो जाये. हा, यह सही रहेगा. एक ही जगह पर जाने से कोई फायदा नही. दोनों इधर उधर काफी दूर निकल गये.
अरे !! इधर तो कुछ दिखाई नही पड़ता ! में लाइट ढूढता हूँ. भले बिजली चली गई हो लेकिन किसी ने दिया या लेटन तो जलाया होगा न. शेठ जी बड़े नेक है मुझे किसी भी तरह कुछ करना चाहिए !! वरना वह मुसीबत में आ शकते है.
बचपन से उसने मुझे पाला है. उनको अपनी माँ की याद आ गई ! कैसे वह उन्हें लेकर आई थी और ओबोरॉय ने उसे संभाला था !! “कुछ कर रमेश कुछ करने का समय यही है ! रमेश मन ही मन बोला.
सुमाली अपने बाकी साथियो को बटोर रहा था ! धनिया, रुमाली, घुघरा, सोमा कहा मर गये सब.. अरे बाकि का माल ले लो जल्दी और अपनी अपनी जगह संभालो..ओर तुम !! चिल्लाते हुवे !! क्या धीरे धीरे बूढ़े बेल की तरह चलते हो.. जरा तेज चलो.. मार दोगे मुझे..फूटी कोडी नही मिलेगी इनकी..रखिया हो जाएगी सबकी..
चलो चलो जल्दी..सभी बोरिया बांध लो..अहारी तुम थोड़े को लेकर दखण की ओर जाओ वहा ये सब ले जाओ.. ओर तुम इस तरफ जाओ.. बारिश ज्यादा हो शकती है.. भीगा सामान कोई नही लेता बाज़ार में. हमारी दिनों को महेनत पानी में डूब जाएगी..
अपने आदमीओं को हडबड़ते हुवे सुमाली बुलाता है. सुमाली इस जंगली इलाके का मुख्या है कुछ औषधिऔ इकठ्ठा करने का छोटा मोटा काम करता है. पास में ही उनका थोडा बड़ा झोपड़ा जैसा मकान था. यु तो हम उसे कोई मकान नही कह शकते लेकिन फिर भी दुसरे लोगो से तो थोडा अच्छा दीखता था.
इनके आलावा ये पूरा प्रदेश पर्वतीय था. इलसिए जगह जगह पर इस आदिवासीओ ने आपनी गुफा तैयार कर दी थी..वहा वे शस्त्र रखते थे, औषधिओ, लकड़ी और कई जंगली पेदाश की चीजे रखते थे, खाने पिने की सामग्री भी रखते थे.
उनका पूरा संचालन एक बड़ी गुफा में से होता था. यही उनकी संसदथी !! उनका रास्ता एक बड़ी गीच जंगली जाडी में से गुजरता था. इस बड़ी गुफा में हजारो आदिवासी बैठ शके ऐसी बड़ी जगहथी. इस कबीलेका सरदार यहाँ ही बैठकर पूरा संचालन करता था. अभी ये सामान्य लगता है लेकिन किसे पता यही सुमाली और उनका इलाका ही इस बड़ी वारदात का साक्षी बनने वाला था !!
लगता है मुझे मंझिल मिल गई. !! रमेश थोडा मन ही मन मुस्कुराता है. कोई मानव आवाज यहा आई ऐसा लगता है. अपने कानो को उस ओर ले जाता है. इस तरफ से आ रही है. लगता है कोइ बूमा बूम कर रहा हो. थोडा आगे चला होगा की उसे रौशनी दिखी.
एक काला और ऊँचा आदमी मसाल लेकर अपने हाथो को हवा में हिला रहा था !! लगता है यह हमारी सहायता कर शकता है. वह जल्दी में था और आगे आगे चलता ऐसेथा जैसे दौडता हो !! अरे रुको भी !! रमेश जोर से चिल्लाता जाता है !! लेकिन बारिश और गडगड़ाटी में क्या कुछ सुनाई देता ! जरा तेज दौड़ते हुवे नजदीक आ जाता है.
लगता है पीछे कोई आ रहा है सुमाली मुड के पीछे देखता है. हो शकता है ये कोई दुश्मन हो.. हमे मारने आया हो.. या सपाई हो.. हमे पकड़ने आया हो !! सुमाली अपनी कुल्हाड़ी को कस के पकड़ कर ऊँची करता है. वही खड़ा रहे !! उनके आवाज में कबिले के सरदार का रुआब था, क्योकि कबिले में सरदार यहा का राजा कहलाता है ! उनका बड़ा कदावर शरीर कोई बडी चट्टान की तरह लगता था.
एक कदम भी आगे मत चलना.. अंजाम बुरा होगा.. काट के रख दुगा !! सुमाली की आवाज जैसे बादल फटा ऐसी लग रही थी ! रमेश की तो हवा ही निकल गई. सामने यमराज खड़े हो ऐसा लगा ! मुँह से आवाज ही नही निकल रही थी !!
अरे ! कहा फंसे. ये तो समजेगा भी नही खामखा मरवा देगा. रमेश का डर बेबजह नही था ! यहा के आदिवासी बड़े ही घातक थे ये बात वह अच्छी तरह जानता था.
सुमाली की गर्जना सुनकर बन्दर की तरह बहुत सारे आदिवासी पेड़ पर से कुद कूद कर निचे आने लगे, थोड़ी ही देर में तो रमेश को पूरा घेर लिया. रमेश ड्राइवर था इसलिए वह पोलिस जैसा दीखता था. रमेश भी संभल गया.
बरसों से वह ओबोरॉय के यहा काम करता था यु कहो को रहता था. ये कोई पेशावर ड्राइवर नही था. वह ओबोरॉय का राईट हेंड जैसा था सब काम करता था. ओबोरॉय की आवाज बाहर निकली नही की रमेशचन्द्र के पैर दौड़े नही ऐसा कभी नही हुवा !! ओबोरॉय को business के लिए ऐसी कई जगह पर जाना पड़ता था वहा यह रमेशचन्द्र उनके काम आता था. उनके साथ ही वह रहता था.
इसलिए वह इतना समयसूचक हो गया था. उसने अपनी केप जल्दी से निकाल दी !! अब एक इशारा सुमाली का काफी था.. अब तो मरा ही समजो..तब ही रमेशचन्द्र अपने कान पकड़कर आगे की और जुका और उसने कुड..कुड..कुड करके कुछ आवाज निकाली..
रुको ये आदमी मदद चाहता है..उसे मत मारो..सुमाली ने थोड़े गंभीर स्वरों में कहा. अब वह थोडा चकित भी था की इसे हमारे काबिले के इशारा कैसे पता है !! ” सरदार !! ये जान पहचान वाला लगता है तभी उसे ये मालूम है ” सोमा ने कहा.
रमेश थोडा बहुत समज पाया था वह छोटा था तब इस इलाके में घूमता रहता था. क्योकि थानगढ़ से ये बहुत दूर नही था. उनका एक मित्र जो आदिवासी के करीबी था. उनके साथ रहते हुवे ये सब शिख गया था ! आज ये काम आ गया, ये सोच कर रमेश मन ही मन खुश हुवा ! बात यह थी की रमेश ने जो इशारा किया था वह इशारा ये कबीले वाले के लिए शरणार्थी का था !!
सरदार के इशारे पर दो हट्टेकट्टे आदिवासी-सुरे आये और उसे दोनों कंधो से उठा लिया ..रमेशचन्द्र को इनकी शक्ति का अहेसास हुवा !! थोड़े दूर गीच जंगल में चले की एक गुफा जैसा कोई सुरंग आया, भीतर जाते ही रमेश को पता चल गया की ये काबिले के सरदार का सभा ग्रह था !! ये बहुत बड़ी गुफा थी जगह जगह पर दीवार पर मसाले जलाई हुई थी. एक बड़ी चट्टान पर सुमाली बैठा और दूर दूर घेरे में सभी आदिवासी-सुरे बैठ गये.
सोमा थोडा उद्ववेगित हो जाता था !! जब वह सुमाली को इस बड़े उचे सिंहासन पर बैठे देखता था, क्योकि वह ये मानता था की ये मेरा है. उनके पिता यहा के सरदार थे. वह भी सरदार होने ही वाला था की बिच में सुमाली का थोडा बहुत ज्ञान मतलब पढाई लिखाई टपक पड़ी !!
चुनाव के समय सारे कबीलेवासी ने ये तय किया की केवल बाहूबल नही लेकिन बाहर की भाषा, गणित, वाक्पटुता में होशियार हो उसे मुख्या बनाया जाये. !!
क्योकि ये इलाका औषधि, जड़ीबूटी का भंडार था उनकी बिक्री के लिए बाहरी लोगो के साथ सम्पर्क करना पड़ता था. यही सोमा का पत्ता कट गया. सोमा अति बलवान था लेकिन दूसरा कोई ज्ञान उनमे था नही. इसलिए सुमाली मैदान मार गया !! तब से दोनों के बिच नोकझोंक चल रही थी.
रमेशचन्द्र ने बड़ी ही निपुणता से आपनी सभी बाते, बारिश, तूफान, कार का फंस जाना, ओबोरॉय का छोटासा कारोबार, उनकी बीबी के प्रेग्नेट होना.. ओंर कोई सहारा नही मिलना..वह सब कह दी.. अंतमे उसने मदद की बुहार भी लगाई…
सुमाली आखो को घुमाकर, शिर हिलाकर थोडा सोचने लगा फिर उसने तुरंत ही फेसला ले लिया की ये लोग आगे जाके काम भी आ शकते है. उनकी बुध्धि तर्कसंगत हो गई थी. इसलिए उसे रमेशचन्द्र और ओबोरॉय में कबीले की विकाश की कुछ आशा दिखी. इसलिए ये तर्कसंगत है की नेता बाहरी प्रदेश का ज्ञान और आदान प्रदान से माहितगार होना चाहिए. तो विकास जल्दी से हो पाए.
सुमालीने सरदार के रुत्बे से अपनी आँखे रमेशचन्द्र पर से हटाई और सोमा को सत्तावाही सुर में कहा “सोमा ! तुम, दो तिन सूरा को लेकर इनके साथ जाओ.., खटखटिया की पूरी तलासी लो. फिर बाकि तीनो को यहा लेकर आओ !
थोडा रुक के.. हां, उस औरत की स्थिति अच्छी नही इसलिए साथ में डाली को ले जाना और तिनो को उतरादी जोपड़े में रखना. फिर वहा में उसे मिलुगा. !! यह कहकर सुमाली खड़ा हो गया और नियम अनुसार सभा बर्खास्त हो गई.. पीछे मुडके उसने सभी गुटों को अलग अलग कार्य करने की सुचना दी और चला गया..
रमेशचन्द्र जैसे सोमा के पीछे दोड़ता हो ऐसे चलने लगा ! सोमा, डाली और दो तिन और सूरा (आदिवासी) उनके साथ चलते थे. क्योकि ये आदिवासी के कदकाठी के सामने वह तो बच्चा जैसा लग रहा था. सोमा मन ही मन सोचने लगा. में तो सुमाली को मारकर एक ही झटके में खेल खत्म कर शकता हु.
लेकिन उनके पिता जब सरदार थे तब से ये कर्तव्यनिष्ठा और सरदार के प्रति वफादार रहने की परम्परा चल रही थी. उनके दादा दंडी के अनुयायी थे. ये दंडी थानगढ़ के करीब जो २०० से ३०० किलो मीटर पर्वतो की हार माला थी उनके बिच वाले कोई अद्रश्य स्थान में रहते थे. वह कभी कभी ही बाहर निकलते थे. ये रहस्यमई शक्ति के मालिक थे. और कोई बड़े अभियान में लगे थे.
इनके बारेमे आदिवासी को इतना ही पता था. लेकिन सोमा के दादा उनसे मिले थे. तब वहा के कबीलों में आपस में महा भीषण संग्राम छेड गया था. हजारो सुरे आपस में एक दुसरे के खून के प्यासे थे..धडा..धड शिर गिर रहे थे..जांघे काटी जाती थी.. एक दुसरे के कबिले की स्त्रिओ के आंतर अंगो को बर्बरता से काटा जाता था..
कोई नियम नही थे कोई भी किसीकी भी स्त्रिओ को उठा ले जाता था.. कभी कभी तो बच्चे को मार दिया जाता था और स्त्रीओं से जबरन सादी की जाती थी सम्भोग किया जाता था वह भी जाहेरमें. ऐसी अराजक स्थिति में, उस भीषण युध्ध में दंडी का आगमन हुवा !! उसने सभी मुख्या की एक सभा बुलाई.
दंडी के पास चमत्कारी शक्ति है ऐसी बात सभी जानते थे. इसलिए उनकी बात कोई नही टालता था. दंडी ने सभी को एक कर के कुछ नैतिक और मानवीय नियम बनाये. स्त्रिओका सम्मान रखने और बच्चो पर अत्याचार न करने के नियम बनाये. दुसरो की स्त्रिओ को उनकी मर्जी बिना विवाह नही करने के नियम बनाये.
मुख्या केवल लड़ाई से नही लेकिन सभी की संमती से बनाना चाहिए येभी शिखाया. इनसे पुरे काबिले का विकास होने लगा. सभी जगह सुख शांति और अमन का माहोल बनता गया. फिर दंडी तो कोई बड़े अभियानमें वहा से अद्रश्य हो गये, लेकिन तबसे लेकर आजतक सभी ये नियमो का पालन कर रहे थे.
ये सारी बाते सोमा के मन में एक चल चित्र की भांति चलने लगी. सोमा ने मन ही मन अपने आप को कहा ” जो भी हो जाये, मुझे ये परम्परा तोडनी नही है, इनसे ही कबीले का विकास हुवा है. सभी लोग शांतिपूर्ण जी रहे है “ सोचमे डूबे हुवे वह थोडा आगे निकल गया था.
तबही रमेशचन्द्र पीछे चिल्लाताथा वह उन्हें अब सुनाई पड़ा. रमेशचन्द्र टूटीफूटी आदिवासी भाषा जानता था. लेकिन सोमा को तो हिंदी बिलकुल नही आती थी. रमेशचन्द्र के इशारे और थोडा टुटाफूटा उसे सुनाई पडा ओर उसे यह पता चला की, वह कहताथा की इस तरफ नही दाई तरफ चलना है. हमारी कार वहा है. !! अब सोमा और उनके साथी थोडा रुके उसने रमेशचन्द्र को आगे चलने दिया.
हालाकि, उनकी नजर तो उन पर डटी ही थी क्योकि मन ही मन उसे ये भी शंका सताती थी की ये झूठा हो और हमे फसा न दे ! इस तरह की घटनाऐ पहले भी यहा होती रहतीथी, इसलिए यहा के आदिवासी बहुत चोक्कने हो गये थे. रमेशचन्द्र अब आगे चलने लगा और पीछे बहुत धीरे धीरे सोमा और उनके साथी चलने लगे.
इस तरफ ओबोरॉय काफी दूर तक गया लेकिन उसे कुछ दिखाई न पडा ! तब उसने सोचा की हो शकता है की रमेश को कुछ मिला हो. क्योकि वह भी अभी तक वापस आया नही था. ओबोरॉय धीरे पगले जहा से वह दोनों अलग हुए थे वहा आया. उसने चारो और देखा लेकिन रमेशचन्द्र का कोई अता पता नही था. जेब मेसे मोबाईल निकाला, सोचने लगा.
“ये इलाका थानगढ़ से बहुत दूर नही है, हो शकता है मोबाईल लग भी जाये..” लेकिन ये क्या, ? मोबाईल कनेक्ट होते ही रिग की आवाज ओबोरॉय के कानो में गूंज पड़ी लेकिन तुरंत रमेशचन्द्रने मोबाईल काट दिया ! ओबोरॉय समज गया की कुछ तो है !! सचमे ऐसा ही था उस समय रमेश उस सभा सुमाली के साथ बैठा था.. अगर उसने मोबाईल उठाया होता तो मारा गया होता क्योकि ये आदिवासी मोबाईल से डरते थे !!
वह तुरत अपनी कार की ओंर चल पड़ा !! इस प्रकार की सांकेतिक भाषा उन दोनों में चलती रहती थी. सरला मुझे लगता है रमेश आने वाला है उसे कुछ तो मिला है. वह मोबाईल काट रहा है. अब हम यहा ही इंतजार करेगे ! ” अच्छा हुवा अविनाश को नही लिया, वरना इतनी आशा नही दिखाई पडती ” सावित्री न सुने इस तरह आहिस्ते आहिस्ते ओबोरॉय बोला.
अभी उनके शब्द पुरे भी नही हुवे थे की, उसे रमेशचन्द्र को दो तिन आदमी और एक ओरत के साथ आते हुवे देखा. उसमे एक आदमी मसालची था. हालाकि उसे धुंधला सा चहरा दिखाई पड़ा. जैसे ही रमेश करीब आया ओबोरॉय की आखे उसे कुछ पूछ रही लगती थी.
रमेशचन्द्र समज गया की वह मोबाईल क्यों काटा ऐसा पूछना चाहता था. तब ही रमेश.. ओबोरॉय कुछ बोले इनसे पहले ही थोडा चिल्लाते हुवे कह देता है, “मेरे साथ ये आये है, जो हमे सहारा देने वाले है. बाकि सब बाद में कहुगा.
” बहुत अच्छा..!! कहकर ओबोरॉय एकदम नोर्मलसा हो गया. क्योकि जरा भी असामान्य दीखता तो सोमा उन पर शंका करके पकड लेता. अब सोमा और उनके साथी कार की तलासी लेने लगे तब रमेशचन्द्र को पता चला की वह लोग कार को खटखटीया कहते है.
ये सोच कर वह थोडा हसने लगा, लेकिन समय की गंभीरता को देखकर वह फिर से अपने आप को संभालने लगा..
कुछ नही है.. सब बराबर है..आखरी तलासी खत्म होते ही एक आदमी बोला..अच्छा तो चलो इन सब को सरदार ने कहा वही ले चलो. आगे वही पता चलेगा की इनका क्या करना है. सोमा बोला. ओबोरॉय और सरला सावित्री को बाहर निकालने लगा.. सावित्री दोनों कंधो का सहारा लिए हुवे तेज प्रसव पीड़ा से जूझ रही थी. तब रमेशचन्द्र कार को एक ओर लेने में लग गया..
थोड़े चले ही थे की डाली उनकी स्थिति को समज गई, उसने कुछ कहा लेकिन रमेशचन्द्र दूर था इसलिए किसी को मालूम नही पड़ा की वह क्या बोल रही है ?. ओबोरॉय ने रमेश को जल्दी आने को कहा और डाली की और इशारा भी किया. आते ही रमेशचन्द्र समज गया उसने कहा की ये कहती है की अगर कोई कपड़ा है तो हम उसे उठा ले !!.
ओबोरॉय ने सामान में से एक बड़ी चद्दर निकाली उन पर सावित्री को लेटा दिया. दोनों ओर से आदिवासी सुरे ने पकड़ा. तब फिर से रमेशचन्द्र को उनकी शक्ति का अहेसास हुवा. वह लोग सावित्री को उठाकर ऐसे चलने लगे की जैसे दौड़ते हो.
पीछे रमेश, ओबोरॉय और सरला दौड़ रही थी. ये टोली बड़ी देर तक चलती रही. फिर एक बड़ा चढ़ान आया उस चढ़ान को चड़ते ही एक बड़ा मकान जैसा झोपड़ा आया. मकान इस तरह से था की वहा से उपर देखे तो बड़ी बड़ी चट्टान दिखती थी. ये सारी जमीन एक पर्वतमाला का भाग ही था.
हांलाकि उसमे दो तिन कमरे दिखाई पड़ते थे. मकान में प्रवेश करते ही drawing room जैसी एक बड़ी जगह थी. दो तिन खटिया वहा पड़ी हुई थी. उनके भीतर एक कमरा था. डाली सावित्री को भीतर के कमरे में ले गई उनके साथ सरला भी गई.
एक आदिवासी महिला दौड़ती हुई आई और वह भी भीतर गई. अब भीतर सावित्री के साथ दो तिन ओरते थी. उसने कमरे को एक घास और लकड़ी के दरवाजे से बंध किया, क्योकि ये ओरतो का मामला था !! ओबोरॉय और रमेशचन्द्र मकान के बाहरी हिस्से वाले कमरे में एक खटिया पर बैठे थे.
बास से गुनी हुई उस खटिया को मसाल के झांखे प्रकाश में ओबोरॉय देखते रहे.. सोमा ने एक आदमी को कहा की तुम बाहर बैठो और नजर रखते रहो में जाता हु. ओबोरॉय चिंतित दिखाई पड़ते थे. सुबह का सूरज उनके लिये कैसा होगा क्या सावित्री की गोद फिर से सुनी हो जाएगी ? फिर से वह आक्रन्द सुनाई पड़ेगा ?
मरा हुवा बच्चा देखकर सावित्री की चींख को वह कैसे सहन कर पायेगा !! उसे कैसे संभालेगा !! ये सब सोच एक साथ उभर कर आ रही थी और ओबोरॉय का दिमाग चकरा गया ! वह शिर पकडकर बैठ गया . तबही रमेशचन्द्र जो ओबोरॉय के करीब था वह दिलासा देने के सुरमें बोला. “चिंता मत करो, शेठ जी ! मेरा मन कहता है इस बार सब कुछ ठीक होगा.
लेकिन, अब तो ओंबोरॉय को भगवान पर भी भरोसा नही था. तिन तिन बार समय की मार खाते हुवे अब अबोरॉय टूटू चूका था.. दुखी और थर थराते आवाज में वह बोला ” रमेश.. मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है !! क्या विधाता रूठ गई है. !!
“शेठ जी मन छोटा न करो, मेने इस बार तो मातादी से मन्नतभी मानी है, माता रानी सब अच्छा करेगी !!” रमेश ने औपचारिकता से कहा. क्योकि मन ही मन तो रमेश भी समजता था की इस बार भी वही होगा !!
ये सब चल रहा था की सावित्री की प्रसव पीड़ा की आवाज आते हुवे बंध हो गई. लेकिन बच्चे की आवाज नही आई. ओबोरॉय बिलकुल समज गया अपने आप को बुरे समाचार सुनने के लिए तैयार करने लगा. थोडा समय यु ही बीत गया.
एक सन्नाटा सभी जगह पर छा गया. ओबोरॉय को ऐसा लगा की जैसे अँधेरा चारो ओर छाता जाता हो और उनके पुरे अस्तित्व को निगल रहा हो..उनसे एक चीख निकल पड़ी. चीख के बाद फिर से वही घोर अंधकार छा गया.
अब यही राह थी की भीतर से कोई बाहर आये ओर कहे की असल में क्या हुवा. डाली हाँफती हुई बहार आई ओर एक साथ बोल गई की ये ओरत बेभान हो गई है उसने मरे हुवे बच्चे को जन्म दिया है !! ओबोरॉय को कहा उनकी बोली समज में आती थी !! रमेश ने इसी बात का अनुवाद कर दिया. सुनकर ओबोरॉय बात को जैसे पहले से जानते हो वैसे स्तब्ध हो गये.
थोड़े समय तक वह इस तरह बैठे रहे फिर बिजली की चमक की तरह उसे एक ख्याल आया की सावित्री मरे हुवे बच्चे को देखकर बेशुद्ध हो गई होगी या पहले से ही बेशुद्ध थी !! इसे पता करने के लिए वह धीरे से कमरे के भीतर गये उनके पीछे रमेशचन्द्र भी गया.
सरला सर पकड़कर रो रही थी. सरला को पूछने की हिमंत नही थी फिर भी बड़ी मुश्किल से उसने फटी आवाज में पूछा सरला !! ये क्या हुवा ? सरला ने बात को बिच में काटते हुवे कहा “भाभी बेहोस हो गई थी फिर भी हमारी उम्मीदे छुटी नही थी..”
“लेकिन जब बच्चे ने कोई आवाज नही निकाली तब हम…!! इतना कहते सरला फिर से रो पड़ी.. ओबोरॉय जल्दी से बहार निकल गये.. उनके पीछे रमेशचन्द्र जो अब तक मौन ही था वह उनके कंधो पर हाथ रखते हुवे ” सम्भालो शेठ जी अपने आप को, भाभी तो जिन्दा है न ! वही बहुत है हमारे लिए.. ” एक दिलासा देने की, फिर से नई आश जगाने की व्यर्थ कोशिश करता है.
दोनों फिर से खटिया पर बैठ जाते है..थोड़ी देर बाद ओबोरॉय ध्रुजते आवाज में बोले..” सब कुछ फिर से टूट चूका, अब क्या करे ? बच्चे का नही.. मुझे कल की चिंता है ! रमेश, कल में सावित्री को क्या उत्तर दुगा वह पूछेगी की मेरा बच्चा कहा है तब क्या कहुगा ? कैसे संभालुगा उसे रोते हुवे… ये कहते फिर से मौन हो गये.
थोड़ी देर में तो दोनों ओरते भी बहार आ गई ..वह कुछ बक बक करती चली गई.. ओबोरॉय रमेश को ये क्या बोली ये पूछना चाहते थे लेकिन मुह से शब्द बाहर ही नही नीकला. अब सरला सावित्री के पास अकेली बैठी थी. थोडा समय फिर से बिता
अब ओबोरॉय को दूर से किसीके बोलने की आवाज आ रही थी. उस तरफ मो घुमाकर देखा तो एक बड़ा ऊचा और कदावर आदमी, एक ओरत के साथ आ रहा था. ओरत को तो वह पहचान गया की ये वही थी जो भीतर कमरे में प्रसव के दोरान थी.
लेकिन आदमी कौन था वह उसे नही मालूम पड़ा. लेकिन रमेशचन्द्र तुरंत बोल पड़ा की लगता है सुमाली स्वयम आये है. “सुमाली !! ये कौन है ? ” ओबोरॉय सम्भलते हुवे. ये इस काबिले के सरदार है. और उनके साथ डाली भी है. लगता है बच्चे के मरे हुवे पैदा होने के समाचार सुनकर आये होगे.
सुमाली जल्दी जल्दी आता है थोड़े दूर ही रुक जाता है वह रमेशचन्द्र को पहचानता था. लेकिन ओबोरॉय को नही. इसलिए दूर से रमेशचन्द्र को इशारा करके बुलाता है. रमेशचन्द्र उनके पास जाता है. थोडी देर तक दोनों गुप्तगू करते रहते है. ओबोरॉय को कुछ सुनाई नही पड़ता उनको तो केवल शिर ही हिलते दीखते है. थोड़ी देर ये चला फिर थोडा मुस्कुराते हुवे रमेशचन्द्र वापस आते दिखे.
ओबोरॉय को अचरज तो हुवा की इस मोके में रमेश क्यों मुस्कुराया. कुछ तो है. !! वह आगे उल्टा सीधा सोचे की तुरत ही रमेश उनके पास में ही बैठ गया. उसने सारी बात बताई जो सुमाली और उनके बीच हुई. थोडी देर तक दोनों आपस में बात करते रहे. अंत में दोनों के बिच कुछ संमती हुई हो वैसे दोनों ने शिर हिलाया. ओबोरॉय ने सरला को जल्दी से बाहर बुलाया. अब तीनो के मो पर थोड़ी ख़ुशी भी थी और थोडी आशका भी !!
रमेश फिर से सुमाली के पास गया अपना शिर हिलाते हुवे कुछ कहा..डाली भी कुछ कह रही थी.. फिर दोनों जल्दी से चले गये..
Episode-2 दीवान खंड में विराक्ष को रमेशचन्द्र ने समजाय