ये बात को पढके किसी को कुछ अलग लगे नवीनतम लगे. लेकिन इसमें कोई भी अतिश्योक्ति नही है. उपनिषद हमारे जीवन के प्रश्नों के हल करता बन शकते है. ये गूढ़ ज्ञान केवल ग्रंथो में भरा पड़ा है. उसे केवल निवृति का ज्ञान बताके हम उससे दूर रहे है !!
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उपनिषद से वर्तमान समस्या का हल
लेकिन यही आज की मांग है की मनीषीओ ने दी हुई ज्ञान की गठरी को खोले !! उन्हें पता था की हर समय यह ज्ञान अत्यंत जरूरी है. इसलिए ये ज्ञान के सारे ग्रंथो की रचना की गई है. क्योकि पूर्णता तरफ गति जीवका लक्ष है. इनसे ही सारी बाते जुडी हुई है.
गुस्से होना, चिंतित होना, तनाव होना ये सब विपरीत दिशामे चेतना को लगाना है. मन की इस विपरीत स्थिति के साथ हमारी self awareness जुड़ जाती है. फिर ऐसा अहेसास करने लगती है. उससे दूर हो कर आनंद का अनुभव करना एक आत्मविश्वास, एक प्रसन्नता और निरंतर उत्साह का अहेसास.. उनके करीब जाने से होता है.
गुरु और शिष्य के संवाद द्वारा ज्ञान
हालाकि उपनिषद ज्ञान तो गुरु-शिष्य के सवांद के माध्यम से समजाया था. लेकिन बाद में उसे लिख लिया गया था. जो भी हो, हमारे लिए तो ये अमृत के समान है. ये इतना गहन होने का कारण उन समय के शिष्यों की पात्रताथी.
क्योकि जब भी कोई गुरु अपने शिष्य को ज्ञान देता है. तब वह देखता है की उसे किस स्टेज में ज्ञान दे. सामने वाला अगर दूसरी या तीसरी कक्षा का हो. तो उसे college के student की तरह नही समाजाया जाता. प्राचीन युगमे केवल बोलने से और श्रवण करने से स्मृति में रह जाता था.
गहन ज्ञानभी समज में आ जाता था. लेकिन धीरे धीरे उसे कथाओ द्वारा समजाने की आव्यश्कता हुई. इसीलिए पुराणों की रचना हुई. लेकिन ज्ञान तो एक ही है. श्रोता की पात्रता अनुसार उसे समजाया जाता है.
इसलिए यहा दोहन करके जो सहज समज में आये. वर्तमान समय में किस तरह से इनका प्रयोग किया जाये, ताकि इस गहन ग्रंथो द्वारा हमारी उलझने दूर हो, थोडा उपर उठ शके ऐसा यहा पर प्रयास किया गया है.
Self awareness स्व की अनुभूति जो हमारे जीवन को दिव्य बनाये.
वास्तवमे तो पूर्णत्व की और गति करना ही सुख और निरतिशय आनंद का रास्ता है. जीवन को व्यतीत करते करते हम वहा तक पहोच शकते है.
कर्म का समुचय तो उसे करते करते उपर उठने के लिए है. नही के निम्न स्तर पर आने के लिए. ये कोई ऐसी बात नही की आज शुरू की और कल मिल गई. ये तो एक दिव्य रास्ता है.
जो जितना उपर उठता है उसे इतना फायदा होता है. हा, उनको ठीक से समजना और किस तरह हम उसे हमारे वर्तमान जीवन में उपयोग कर शकते है उसे जानना जरूरी है. इसी लिए ये ब्लॉग है.
Self awareness स्व की अनुभूति जो हमारे जीवन को दिव्य बनाये. निरंतर आनंद और तृप्ति का अहेसास कराये. इनके लिए मनीषीओने जो कुछ प्रयास किये, गुरु और शिष्य की हमारी वैदिक प्राचीन परम्परा की फलश्रुति यह उपनिषदों है.
माण्डूक्योपनिषद बहुत प्राचीन है.
हमारी ज्ञानकी विचारधारा है. उनका आधार स्तंभ उपनिषद है. यह उपनिषद अती प्राचीन है. गुरु शिष्य के बिच जो सवांद हुए वह बाद के समय में लिखे गये है, वह उपनिषद है. इसमें भी माण्डूक्योपनिषद सबसे ज्यादा प्राचीन है. ये उपनिषद बहुत ही छोटा है. उनमे केवल १२ श्लोक है.
लेकिन हम आगे देखेगे की इसमें पूरा का पूरा ज्ञान समाया हुवा है. छोटी सी गागर में पूरा सागर भरा है. अगर कोई माण्डूक्योपनिषद की साधना करे तो उसे दिव्यानुभूति हो जाये इसमें कोई शंशय नही है. लेकिन उनका ज्ञान जल्दी से समज नही आता.
क्योकि यह वाचक की मन की उच्च स्थिती मतलबक चित की शुध्धता पर आधारित है. इनका अभ्यास कोई वार्ता नही की हमने पढ़ लिया लेकिन उनके अनुसार साधना करने से ये स्वयं अनुभव में आता है. मतलब की वाचक के चेतना के स्तर को इतना उचे ले जाये की गहन अनुभूति उसे हो पाए.
बहुत ही आसान भाषा में कहे तो हमारी जो divine self दिव्य चेतना अथवा आत्मा का प्रकाश जहा पर प्रविष्ट होता है वहा पर हमारा जगत उत्पन्न होता है. इसके आधार पर एक स्तर का निर्माण होता है. वही स्तर अगर निम्न हो तो उलझन में ही जीवन बीत जाये.
अगर यही चेतना का स्तर उपर उठता जाये तो गहन अनुभूति, योग के सिध्धांत समज में आने लगे और अनुभूति भी होने लगे.पूरी बात समज ने के लिए माण्डूक्योपनिषद पर्याप्त है. इसलिए में शुरू इस उपनिषद से करता हु.
मित्रो यहा पर मे जितना possible हो उतना सरल भाषा का उपयोग किया है. फिर भी थोड़ी गहनता जरूरी है आत्म अनुभव में. यहा पर इनके related जो कोई भी बात है वह आगे अलग अलग पोस्ट बनाके समजाइ गई है