आज के युगमे ये साधना अर्वाचीन भी है और प्राचीन भी है. सच पूछो तो ये पध्धति आजकी अनिवार्य जरूरियात है. क्योकि भाग दोड वाली जीवन पध्धति ने हमे बहुत ही नुकशान पहोचाया है. शरीर के स्तर पर हमारा ध्यान हे ही नही.
नतीजा ये आता है की ज्यादातर लोग केवल प्राण और मन की समस्या से ही पीड़ित रहते है. उसे मालूम ही नही होता की मुझमे क्या गलत हो रहा है. हमारा ब्लॉग पूरी तरह से इस बात पर सजग है प्राचीन और अर्वाचीन को जोड़ने का काम करता है.
बहुत ही सहज बात है की ये एक विकास यात्रा है. सामान्य में से असामान्य बनने की. एक एक गुण और दोष पकड़ना मुश्किल है. इसलिए यहा पर हम एक गुणों का भंडार की तरफ ही गति करते है. एक ऐसी स्थिती की जिसमे हमे ये सब आनंदित लगे पूर्णता से भरपूर लगे, स्वस्थ लगे, रंगीन लगे.
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प्राणायाम साधना (विधि )
(benefit in self awareness)
सबसे पहले मतलब की प्राणायाम का अर्थ जानने के पहले हम प्राणायाम कैसे करना है वह जान लेते है. method of pranayama आम तौर पर प्राणायाम के कई प्रकार है जैसे की अनुलोम विलोम, भ्रस्तिका प्राणायाम, कपालभाती प्राणायाम, शीतली प्राणायाम, उज्जयी प्राणायाम विगेरा लेकिन यहा पर जो प्राणायाम करना है वह हाथ को मु और नाक तक जाने नही देना है. मतलब की हाथ से नासिका को बंध नही करना. इसे हम सहज प्रणायाम कहेगे. मतलब की सहजता से करना और धीरे धीरे समय को थोडा बढ़ाना.
- शांत हो कर या पद्मासन, सुखासन या जो भी आपको सुखद हो उस आसान पर बैठ जाये क्योकि अगर थोड़े लम्बे समय तक हम करे तो हमे कोई दिकत नही आनी चाहिए अगर बल पूर्वक आसान करे तो बार बार मन वहां जायेगा. यहाँ पर एक ध्यान रखना है की रीड की हड्डी एकदम सीधी straight होनी चाहिए.
- अब धीरे धीरे श्वास को भीतर की और नासिका से खिचे और पूरी मात्रा में श्वास को फेफड़े में भर दे. फेफड़े पूरी तरह से श्वास से भरा जाने चाहिए
- मन एकदम शांत करदे मन में कोई विचार उभरने लगे तो भी उनसे एकाकार मत होइए उन्हें जैसे के तैसे छोड़ दी जिए
- में उन विचार का द्रष्टा हु इस तरह से बरतिए मतलब यह भी सोचना नही वरना उस उल्ज़न में मन पड़ जायेगा
- थोड़े समय तक श्वास को भीतर ही रखिये जितना रख शके उतना रखिये क्योकि वरना बाद वाला श्वास जल्दी से लिया जायेगा. यहा पर जल्द बाजी नही करनी है बड़े आराम से करिये
- अब श्वास को धीरे धीरे छोडिये एकदम आहिस्ते जरा भी मन व्यग्र न हो जैसे सहज क्रिया हो ऐसे इस समय भी जैसे मन से में मन नही हु ऐसा ही सोचना है क्युकी हमे उपर उठना है यह तबही सम्भव होगा जब हम इन से न जुड़े.
- अब आएगा प्राणायाम का रेसियो मतलब कितने समय तक श्वास रोकना विगेरे यहा पर हम १:४:२ का रख शकते है या एकदम जो आसन लगे.
- यहा पर प्राणायाम का इतना मतलब है की गहरी श्वास लेना और मन को शांत करके उनसे उपर उठना.
- क्योकि गहन ध्यान में तो सब कुछ भूल जाना है ध्यान तो अपने आप लग जाता है
इस तरह से बहुत आसानी से शरू शरू में पन्दरा मिनिट तक प्राणायाम बादमे सब कुछ भूलकर गहन ध्यान करना है. नियमित अभ्यास से यह इतना सहज हो जायेगा की आप कही पर भी यह कर शकोगे. सुबह पर प्रातः काल मे ये ज्यादा फायदा कारक है इतना ही नही रात को सुते समय भी कर शकते हो. आदत हो जाने पर तो साधक निरंतर ध्यान में रहेगा. काम करता हो फिर भी अपनी निज चेतना या self awareness में रहना सम्भव है
प्राणायाम का अर्थ और जरूरीयात -Meaning of pranayama
इसमें आज का विषय है pranayama. प्राणायाम का अर्थ है प्राण का आयाम मतलब प्राण का व्यायम. जिस तरह शरीर का व्यायाम करने से शरीर सुदढ़ बनता है, उसी तरह से प्राण का व्यायाम करने से प्राण की गति हमारे शरीर में नियमित होती है. Prana can flow regularly in our body.
हम पुरे श्वास लेते ही नही !! आज तक के प्रयोगों से ये उभर कर आया है की हमारे फेफसा का ४० या ५० प्रतिशत भाग बिना प्राण के ही रहता है. क्योकि हमारे अधूरे श्वास लेने की आदत हमे ये नुकसान करती है.
जो प्राण से वंछित रह गया है वहभाग में रोगों के विषाणु रहने लगते है. जैसे साफ सफाई नही होती वह कमरे में कचरा जम जाता है, इस तरह से अपुरते प्राण के कारण फेफड़े के उन भाग में कचरा जम जाता है.
अगर लंबे समय तक ये बात बनी तो धीरे धीरे फेफसे का वह हिस्सा बिनकार्यक्षम बनता जायेगा. जापान में भी शरू से ही श्वास लेने की टेकनिक बच्चो को सिखाई जाती है. जब हम पूरी तरीके से और पूर्ण रूपसे श्वास लेते है तब हमारे शरीर में ऑक्सीजन की खपत नही रहती.
प्राण की शरीर में जरूरीयात
प्राणवायु की अधुरप काफी सारे रोगों को जन्म देती है. प्राण का काम बहुत ही important है हमारे जीवनमे. यु कहो की हमारा जीवन ही प्राण के कारण टिका हुवा है. इसलिए कोई भी आदमी जिन्दा है या मुर्दा उनकी पहचान उनके श्वास के आधार पर होती है.
हमारे शरीर में सभी जगह पर पोषक तत्व को पहोचाना. शरीर में जो कचरा है उनको बहार धकेलना. हमारे बोलनेका काम, सुनने का काम, लोही का परिभ्रमण विगेरा सब कुछ इस प्राण के कारण होता है. मैथुनकी क्रिया प्राण के कारण होती है.
हालाकि इसमें प्राण निम्न गमन होते है. मतलब की प्राण की गति निचे की और जाती है. हमारे शरीर में इस तरह प्राण ही जीवन है प्राण ही सब कुछ है. हमारे मस्तिष्क में भीप्राण ही सर्वोपरी है. अगर प्राण ठीक मात्रा में नही पहोचता तो माइंड भी पूरी त्तरह कार्य शील नही होता.
साधना में प्राणायाम की प्रक्रिया
Pranayama can promote relaxation and mindfulness ये हुई प्राण की बात. अब हमे जो खास कार्य करना है वह है प्राण द्वारा एक चित में सर्किट बनाना जो हमे निरंतर आनंद और शकती दे शके.
प्राण और मन दोनों एक सिक्के की दो बाजु है अगर एक को वशमे कर लिया तो धीरे धीरे दूसरा भी वशमे होता जायेगा. नियमित प्राणायाम करते रहनेसे एक प्रकार की प्राण पर पकड आ जाती है.
इसलिए अगर मन व्यग्र हो जाये तो तुरंत ही प्राणायाम करके उन्हें संतुलन में लाया जा शकता है. ध्यान के शरू के शरुआती दोर में हम प्राणायाम करने को कहेगे. इससे क्या होगा की मन ध्यान करने के अनुकूल हो जायेगा.
या हमारे स्वरूप में हम डूबे गे तब मन हमे खिचेगा नही. वरना हम हमारे स्वरूपमे जायेगे और वह हमे अपनी और खीचेगा (मतलब की उनमे जो वृतिऔ के संस्कार कायम हो गये है वह हमे फिर से उनकी और खिचेगे).