मित्रो यहा पर यह विचार या सोच रजु की गई है जो आनंद के अनुभव में प्रगट हुई हो. यह सोच आपको साधना में जीवन में काम आ शकती है. आनंद के अनुभव में, दिव्य प्रशन्नता का माहोल खड़ा करने के लिए. या बंजर जमीन पर पुष्प खिलाने के लीये यह एक प्रेरणा बन शकती है. जो भी सोच मेरे भीतर उभर कर आई वह यहा यथाकचित लिख ली गई है. आप सब का विकास हो और दिव्य ज्ञान का व्याप हो वही चाह है मेरी. I wish you happy and full of pleasure in life and constant happiness. Destroy all odd thoughts.
दिव्य चिंतन २८-०२-२१
हमे ये मानना शुरू करना है की ये जो मेरी body है उनसे अलग मेरी सत्ता है में इनसे भिन्न हु और ये तन और मन दोनों मेरे लिए साधन है बस यही साधना की शुरूआत है योग की शुरूआत है. ये कोई कहने और सुनने की बात नही लेकिन एक वास्तविक सोच है जो धीरे धीरे हमे द्रेत से अद्रेत तक ले जाएगी. क्योकि जीवन उस उलझनों में बीत जाता है जो आखिरमे यहा ही छुट जाती है !!
दिव्य चिंतन २४ -०२-२१
जीवन को सहज भाव से जीना निरंतर आनंद के लिए जरूरी है हमें जो जीवन मिला है उनका पूरा प्रोग्राम प्री बिल्ड है मतलब की शरीर की और पुरे जगत की जो रचना है वह एक नियम से बंधी हुई है जन्म, मृत्यु, सुख, दुःख, रात दिन जैसे शाश्वत सत्य को कोई बदल नही शकता. इनको सागर की लहेरे की तरह देख कर उनसे भी पर जो हमारी दिव्य चेतना है उमसे एकाकार रहना सहज भाव है. उनमे रहकर जो भी कार्य हो वह निश्चित ही उत्तम होगा !!
दिव्य चिंतन २१-०२-२१
जीवन का लक्ष क्या हो शकता है ? ये एक खोज का विषय बन जाता है अगर में कहू की ये उसका लक्ष है तो सभी के लिए और सभी स्थिती में ये सच नही हो शकता !! वास्तव में इनकी खोज ही एक साधना है और हम जैसे ही इनके बारेमे सोचे की तुरंत साधना की शुरूआत हो जाती है जैसे जैसे हम आगे बढ़ते है नये नये आयाम हमारे सामने आते है और यही इनका लक्ष है मतलब हमारी खोई चेतना को पाना लक्ष हो शकता है ये बहुत विशाल है..
दिव्य चिंतन १८-०२-२१
त्याग बहुत ही विस्तृत शब्द है हमारे जीवनमें त्याग का सीधा सम्बन्ध पसंदगी से भी है कोई ज्यादा मूल्यवान वस्तु पाने के लिए उनसे कम मूल्यवान वस्तुका त्याग करता है. दूसरी बात है हर क्षण क्षण जो भी ऐसे विचार जो हमे निन्म स्तर पर ले आये, नकारात्मकता से भर दे उनका त्याग वास्तवमे त्याग है. साधना में आत्मनिरिक्षण के बिना ये संभव नही है !!
दिव्य चिंतन dt. 13-02-21
योग के कई आयाम है वह अपने साधक को बाहरी और भीतरी इस तरह से दोनों और से मजबूत बनाता है. योग के साथ अगर अध्यात्म की सोच भी जुड़ जाये तो योग की यात्रा दिव्य चेतना तक पहोच जाती है. योग में ये बात समाई हुई है लेकिन साधक की कक्षा के अनुसार उसे ये समज में आता है..
दिव्य चिंतन dt. 12-02-21
बुरी आदतसे छूटना अति आव्यश्क है क्यों की ये हमारे जीवन की दिशा ही विपरीत कर देती है. कैसे छूटे ? हम दो बाते सोचेगे !! पहली है बुरी आदतका हमारे जीवनमें किसीभी तरहसे प्रवेश न हो पाए. आपने ये ब्लॉग पढ़ा ? आप gyanprapti से जुड़े.. जैसे ही जुड़े की एक संकल्प लेना है ! में मेरे जीवन में कभीभी बुरी आदतको प्रवेश ही नही दुगा !! क्यों की सबसे बड़ा बचाव बुरी आदत को प्रवेश न देन है !!
दिव्य चिंतन dt. 10-02-21
आदत शब्द लगता तो बहुत ही सामान्य है लेकिन कार्य उसके असामान्य है कठिन से कठिन ध्येयभी आदत से सिद्ध किये जा शकते है..आदत एक सरल हप्ते की स्कीम है अगर कोई कार्य एक ही समय पूरा न हो तो आदत डालदो धीरे धीरे कब हम उपर उठे यह पता ही नही चलेगा..अच्छी आदते डालना जीवन ध्येय सिद्ध कराता है..
दिव्य चिंतन dt. 09-02-21
नियमितता बहुत ही जरूरी है जीवन में कोई भी कार्य जब तक सहज न हो जाये तब तक उसमे हम एकरूप नही हो पाते सहजता तबही प्राप्त होगी जब उसे नियमित रूप से किया जाये.. कार्य कितना भी कठिन क्यों न हो लेकिन अगर उसे करने की आदत डाल दे तो आसान हो जायेगा क्योकि यहा पर हमने किये हुवे कार्य ही हमारा प्रेरक बनता रहेगा इसलिए ज्यादा सोचे नही शुरू की जिए हर कदम ही पथ दर्शक बनता जायेगा
दिव्य चिंतन dt. 08-02-21
परिस्थित हमारे सामने हर हमेश नई नई चुनोती ले कर आती है ऐसा कोई इन्शान नही जिनके जीवन में ये न हुवा हो लेकिन, बात यहा पर अटकी हुई है की हम उसे किस तरह से लेते है निराश हो के बैठ जाते है या होसला रखके आगे बढ़ते है..हमारा यही द्रष्टि कोण हमारे आगे की यात्रा को तय करता है ध्येय सिध्धि या निराशा..
दिव्य चिंतन dt. 07-02-21
अध्यात्म के पास अपना पूर्ण मार्ग है, उपाय भी है, हर दर्द की दवा भी यहा पर मिल शक्ति है लेकिन इनके लिए हमे उनके सिध्धांत को मानना होगा उनके अनुसार साधना करनी होगी प्रसन्नता, सफलता और दिव्यता सहज रूपसे प्राप्त हो शकती है सबसे ज्यादा जरूरी यहा पर उनके साथ जुड़ने का संकल्प है क्योकि उसे बार बार भूल जाना ही दुविधा का कारण है
दिव्य चिंतन dt. 06-02-21
शरीर का चालक मन है मन का चालक सोच है इसलिए मन और तन की गति सोच के आधार पर तय होती है अगर कोई कुछ न करे केवल विपरीत चिन्तन करता रहे तो भी एक बार वही कर्म करेगा ही इस जन्म में नही तो अगले जन्म में इसलिए विपरीत सोच को दूर रखे अपने जीवनसे…इनसे विपरीत अगर कोई दिव्य सोचता है तो एक बार उसे दिव्यता की और जाने की इच्छा होगी ही..
दिव्य चिंतन dt. 05-02-21
अपूर्णता से पूर्णता की और गति अध्यात्म है चाहे जितना भी दौड़ ले लेकिन केवल शरीर और उनके आधारित चीज वस्तु को आधार मान कर कोई निरंतर आनंद में नही रह शकता उसे उपर उठाना ही होगा क्योकि ये नित्य परिवर्तनशील है. एक बार अपने भीतर की चेतना की करीब पहोचा उनके लिए भीतर क्या और बाहिर क्या ?
दिव्य चिंतन dt. 04-02-21
अध्यात्म जीवन की हर दिशा में उपयोगी है वास्तवमे ये एक ऐसी विद्या है की जो हमें भीतर से बलवान बना देती है हम दोनों और से एक स्वतंत्रता का अनुभव करते है व्यक्ति जितना अपने आप से मजबूत हो उतना बाहरी प्रत्याघातो से ज्यादा सफलता पूर्वक लड़ शकता है.
दिव्य चिंतन dt. 03-02-21
जीवन अल्प है लेकिन सम्भावनाओ से पूर्ण है यही से आगे जाने का मार्ग भी मिलता है और पीछे जाने का भी !! हमारी सोच, हमारे हमारे प्रयास, हमारे कर्म, हमारी इच्छाए पर सब कुछ निर्भर करता है की हमारी आगे की दिशा क्या होगी ? यह अद्भुत मार्ग है कदम रखे धीरे धीरे दिशा अपने आप आपके सामने आएगी
दिव्य चिंतन dt. 01-02-21
हमारे आसपास ही अद्भुत दिव्यता छिपी हुई है अद्भुत आनंद और प्रकृति का बहेतरीन नजारा, प्रसन्नता ताजगी क्या नही लेकिन नजर वही आता है जो हमारे सोच के दायरे में बैठ गया है उससे बहार निकले और मिले जो चेतना विश्व व्यापी है आनंद हो
दिव्य चिंतन dt. 31-01-21
योग एक वरदान है, योग एक कल्पवृक्ष है जिसकी छाव में हमारा व्यक्तित्व विकास होता है शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक उन्नति योग से हो शकती है योग मई जीवन सफलता, सुख, शांति और आनंद की चावी है”
दिव्य चिंतन dt. 30-01-21
एक सोचभी जीवन बदल शकती है अगर वह लंबे समय तक टिक पाए सोचते तो सभी है लेकिन उन पर जीवन व्यतीत करने के लिए लंबे समय तक प्रयास करना आव्यश्क है. मेरा मनना है की शुभ शुरुआत ही यहा पर जरुरी है अगर एक बार शरू करदे फिर रास्ता अपने आप हमारे सामने आ जायेगा
दिव्य चिंतन dt. 20-12-20
हमे स्थिती को पकड़ना नही है उसे बहते रखना है ध्यान के समय में मुजे ध्यान लगा की नही यह भी नही सोचना है वरना तुरंत ही हम ध्यान से अहम भाव में आ जायेगे. बस पूर्ण समर्पण के साथ धीरे धीरे सब कुछ भूलकर आनंद में लींन होते जाना. में किसीको ऐसा कहुगा और ये ध्यान नही है. मेने ये पढ़ा था. यह सारी बाते फिरसे निम्न स्तर पर ले आएगी और हम आगे नही बढ़ पायेगे यहाँ तो बस बहते जाना है. हमारे नियमित जीवन में भी यही सही है. हमे बस बहते जाना है.
दिव्य चिंतन dt. 21-12-20
अध्यात्म केवल एक आत्मज्ञान करके मोक्ष प्राप्त करने के लिए नही है लेकिन यह एक विकास यात्रा है. अगर कोई ऐसा चाहे की में अंतिम समय में मोक्ष की प्राप्ति करुगा और हालमे भले जो हो सो हो. तो यह संभव नही है क्योकि उनकी वर्तमान पल उनकी चेतना का प्रतिबिम्ब है अगर वह भीतर से पूर्णता का अनुभव करने का प्रयास करेगा तो उनका वर्तमान अपने आप दिव्य होता जायेगा.यहा पर कोई निराशा का भाव नही रखना है लेकिन हमने जो गलत तरीके से इनका अर्थ किया है उसे ही दूर करना है. मन के कोई एक छोटे से कोने में रहकर हम पूरी दुनिया को देखते है वह नजरिया गलत तो जगत ही गलत दिखेगा तो कार्य और उनका जो कोई प्रतिभाव हमारे भीतर अनुभव होगा वह गलत ही होगा. चिंता करनी नही तो हो जाएगी. प्रसन्न ही रहना है तो नही रह पायेगे.
फिर भी अगर जमाना हमे इस अनुभूति से बहार ले आये तो क्या करना है हमारे में स्थित रहकर वार करना है. वार करते समय हमे बह जाना नही है. मान ली जिए सामने क्षत्रु की स्त्री खड़ी है तोव वह शत्रु की स्त्री है इसलिए उससे विपरीत कर्म करो की द्रष्टि रखो ऐसा नही क्योकि उस समय अगर वासना का उभर मन में आ जाये तो हममें और उनमे कोई फेर नही रहेगा. मतलब साफ है की जगत में कर्म करे किन्तु अपना भाव गिरने न दे. मुस्किल है लेकिन यही एक रास्ता है निरंतर आनद में रहने का