आज विश्वमे काफी सारे लोग डिप्रेशन की समस्या से जुज रहे है. W.H.O एक आकडे के मुताबिक चार मेसे एक व्यक्ति अवसाद से पीड़ित है. इसमें भी भारत में ये संख्या बहुत बड़ी है. ताजुब की बात तो यह है की जो अवसाद से पीड़ित है उसे मालूम ही नही है की वह अवसाद से पीड़ित है. इसलिए वह ऐसे ही जीता रहता है और समस्या औरभी बदतर हो जाती है.
तो यहा पर हम उनके लक्षण और उनसे बचने के उपाय के बारेमे जानेगे. ये आज के समय की एक अनिच्छित भेट जैसा है. डिप्रेशन की शुरुआत तनावमें से होती है. ज्यादा चिंता करते रहने से भी डिप्रेशन हो जाता है. कोई ऐसा बनाव जीवनमे घट जाये और उनकी effect mind पर बहुत गहरी हो जाये तो पहले तनाव और बादमे अवसाद(depression) की स्थिति आ जाती है. अवसाद एक लम्बा तनाव है.
शुरू शुरू में जब कोई व्यक्ति छोटी छोटी बातो को लेकर बहुत चिड चिड़ा होता है. प्रत्येक घटना और बात को दिलसे ले लेता है. उनके मुताबिक बर्ताव करता है. उन्हें ज्यादा मात्रा में महत्व देने लगता है. तब धीरे धीरे उनका जो mind pattern है वह बदलने लगता है. वह छोटी छोटी बातो गुस्से हो जाता है. धीरे धीरे ये बात तनाव और बादमे अवसाद में परिवर्तित हो जाती है. आजका जीवन ऐसा हो गया है की कितना भी रोको तनाव हो ही जाता है.
हरेक व्यक्ति के सामने अपनी अपनी समस्या है. हरेक को बहुत आगे बढ़ना है. एक दुसरे के साथ comparison होती है. जीवन के हर मोड़ पर दो रास्ते होते है. उसमे से कौन से रास्ते पर चलना ये निश्चित करना बहुत मुश्किल है. परिणाम स्वरूप व्यक्ति उनके बारेमे बार बार सोचता रहता है. लम्बे समय से सोचते रहने से अवसाद(depression) कि स्थिति आ जाती है.
अवसाद की ये स्थिति कोई कोई लोगो के जीवन में थोड़े दिनों के लिए आती है. लेकिन अगर बार बार यह होने लगा तो ये स्वभाव में परिवर्तित हो जाती है. अगर समय रहते हुवे उनके लिए कोई ठोस कदम नही उठाये तो ये जीवनभर रह जाती है. हो शकता है आदमी कोई बड़ी बीमारी का शिकार भी हो जाये.
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तनाव और अवसाद में अंतर-अवसाद के कारण
तनाव की स्थिति अल्प समय के लिए है और बादमे अवसाद हो जाता है. इस तरह हम ये समज शकते है की तनाव शुरूआती बात है और short time के लिए है और बादमे जो स्थाई स्थिति बनती है वह अवसाद(depression) है.
कोईभी घटना बने तब अगर वह हमारी इच्छा अनुरूप न हो की तुरंत हम एक प्रकार की मायूसी महसूस करते है. जब कोई व्यक्ति बिच रास्ते में हमे छोड़ जाये तब भी हमे ऐसा लगता है, की अरे !! अब क्या होगा !! आज कल नोकरी धंधे रोजगार में ये बात तो बहुत सामान्य हो गई है.
नौकरी में बोस की लगातार टिक टिक और फ़िज़ूल की नौकजोक, व्यक्ति को भीतर से परेशान कर देती है. स्वाभिमान पर कभी कभी ठेस लगती है और तनाव उत्पन्न होने लगता है. धंधे व्यापार में भी परिवर्तन आता रहता है. परस्पर हरीफाई की बजह से अनुकूल वातावरण प्रतिकूल होने लगता है.
कभी कभी तो परिस्थिति सरल होते हुवे भी ज्यादा कठिन लगती है. ये सब हमारे बार बार सोचने के स्वभाव के कारण होता है.
लग्न जीवन में आजकल बहुत ही उतार चड़ाव आते रहते है. किसी का बिच में ब्रेक अप भी हो जाता है. व्यक्ति दुसरे ने क्या कहा उनके बारेमे बार सोचता रहता है और धीरे धीरे तनाव उत्पन्न होने लगता है. दुसरे के पास बहुत है और मेरे पास बहुत कम है ये सोच बहुत ही परेशान करती है.
इस तरह इनके कोई एक कारण नही है अनेक है. लेकिन इन सबमे व्यक्ति का अपना स्वभाव बहुत ही माईने रखता है. काग का वाघ करने में हमारा मन माहिर है !! स्थिति सामान्य हो फिर भी उसे असामान्य कर देना मन की पुरानी आदत है.
तनाव के लक्षण – अवसाद के लक्षण
अब हम ये जानने का प्रयास करेगे की कैसे पता चले की मुजे अवसाद(depression) हो गया है. क्योकि रोग की सही दवा तबही होगी जब रोग का निदान समयसर हो पाए. निचे कुछ ऐसे point दिए गये है जिनसे हम हमारी स्थिति को मालूम कर पायेगे.
- किसी भी बात में मन नही लगना. बैठे रहने का मन करना.
- काम शुरू करे की तुरंत उसमे एक प्रकार की आलस्य आने लगना.
- शिर में और कभी कभी सिनेमें दर्द महसूस होना. ह्रदय की धडकन बढ़ जाना.
- बार बार सोचते रहना. अपने आप पर भरोसा खो देना. मतलब की बार बार कोई भी किये हुवे कार्य को चेक करते रहना. कमरे का दरवाजा बंध किया हो फिर भी विश्वास नही होता. और बार बार चेक करते रहना.
- नजदीक की बात को भूल जाना.
- बेचेनी , पेटमे गरबड होना हालाकि यहा पर शुरू शुरू में मन में बेचेनी होती है फिर पेटमे तकलीफ होती है.
- रक्तचाप(B.P) का लेवल बार बार बढ़ जाना या घट जाना. चिड चिड़ा पन, बार बार चिंतित होना.
- किसी भी बात में interest न होना. जीवन नीरस होने लगना.
ऐसे लक्षण अगर दिखे तो ये समजा जा शकता है की ये अवसाद की समस्या से पीड़ित है. in short हम यह कह शकते है की शरीर में कोई समस्या न हो फिर भी मन के स्वभाव के कारण जो कुछ भी उत्पन्न होता है वह अवसाद है.
अवसाद दूर करने के लिए क्या करे ?-what to do to relieve stress
अवसाद दूर करने के लिए क्या करे ? अब जो मुख्य बात है उन पर हम आते है. सबसे पहले आपको अगर ऐसी शिकायत है तो कोई डोक्टर का सम्पर्क करना चाहिए. क्योकि अगर शरीर के स्तर पर कोई नुकशान होता है तो उसे सही समय में बचाया जाये. उनकी सलाह पहले लेनी चाहिए. उनके साथ साथ अब आगे ये समस्या न रहे इनके लिए निचे कुछ उपाय दिए गये है उनका चुस्त रूप से पालन करना चाहिए.
तनाव और अवसाद होने कारण सोचना है. परिस्थिति के बारेमे सोचते रहने से वे कब लूप में चली जाती है वह पता ही नहीं लगता. ये लूप एक ऐसी स्थिति है जो हमारे मस्तिष्क को सतत एक उलझन में डाले रखती है. ये विचारो का चक्रवात है. जो थोड़े थोड़े समय एक जोर सा धक्का देता है.
ऐसे मरीज़ को ऐसा होता है की जैसे ही वह कुछ सोचने की शुरुआत करे की तुरंत यह विचार ही लूप में चला जाता है और तूफान के रुपमे उभर के आता है. बस फिर तो क्या धीरे धीरे वह हमारे पुरे अस्तितित्व को ले डुबोती है. हमारी पूरी शक्ति उनमे ही चली जाती है.
उनसे बहार निकलने के लिए हमे पहले तो ये जहरी लूप को तोडना होगा. इनके लिए एक उपाय है. एक जगह पर बैठकर अशांत मन का अवलोकन करना. मतलब की उसे देखना उसे देखते ही रहना. लेकिन उनकी कोई भी बात पर सम्मलित नही होना. उस समय पर आप अपने सासों पर ध्यान लगा शकते है.
इसे non duality (mindfulness) ध्यान कहते है. इससे क्या होगा की आपके भीतर जो अवसाद का चक्रवात है उसे उर्जा मिलती बंध हो जाएगी. वह धीरे धीरे कमजोर होता जायेगा. हालाकि ये उपाय आपको नियमित रूप से करना है. एक बार आप उनमे निपूर्ण हो गये फिर तो आप चलते फिरते ये सब कर शकते है.
अब जो दूसरा उपाय यह है की प्रत्येक विचार और कार्य के वर्तमान पहलू को ही देखना कोई भावी या भुतकाल का कोई भी ख्याल दिमाग में नहीं आना चाहिए. क्योकि जो अभी आया ही नही उनके बारेमे सोच सोच के पागल हो जाना ही एक पागल पन है. जो चला गया है उन पर सोचते रहेने से भी कोई बात बनने वाली नही है बात तबही बनेगी जब आप कार्य को करते रहेगे और उसमे से आनंद का अनुभवभी करेगे.
सोचके सामने दूसरी सोच रखना और प्रत्येक सोच के एक सकारात्मक पहलू को देखना. कोई भी सतत सोच उभर के आती है तो उनके विरूद्ध एक दूसरी सोच दाखिल कर दो. इनसे क्या होगा की जो पहली सोच है वह धीरे धीरे कमजोर होती जाएगी.
नियमित रहना अपने आपको दिनचर्या में ढालना. जो नियमित रूप से अपना कार्य करता रहता है उन्हें कोई दूसरी बात नजरमे आती ही नही है वह तो बस आपने कार्यमे ही वयस्त रहता है. सोचना बंध करना है और कार्य करना शुरू करना है. मतलब की आपको जो बार बार सोच आती रहती है उन पर रोक लगाये उनके बदले दिव्य चिंतन करना चाहिए
कोई बड़े जीवन ध्येय पर कार्य करना. जो व्यक्ति समाज के लिए, दुसरो के लिए सोचता रहता है उन्हें ऐसी समस्या कम सताती है. क्योकि उनका ध्यान एक रचनात्मक कार्य में लगा रहता है. इस तरह के उपाय अजमाएगे तो आपकी ये स्थिति में काफी सुधार हो शकता है
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