- Episode-1 विराक्ष के जन्म पूर्व की घटना क्या हुवा उस समय ओबोरॉय के साथ ?
- Episode-2 दीवान खंड में विराक्ष को रमेशचन्द्र ने समजाय
- Episode-3 प्रतापसिंह को मिलने ओबोरॉय और रमेशचन्द्र चले
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Episode-3 प्रतापसिंह को मिलने ओबोरॉय और रमेशचन्द्र चले
चलो ठीक है रमेश.. लेकिन अब वीरू के कारनामे को कैसे सुधारे !! दीवान चुप बैठने वालो में से नही. ऐसी कितनी बार हुवा है की दीवान के सामने जरा सा भी शिर उठाया और दीवान ने न गिराया हो !! दो तिन दिन बीत गये फिर भी दीवान चुप है..हो शकता है वह कुछ बड़ा सोच रहा हो..,मुझे वीरू की बहुत ही चिंता हो रही है..तो में क्या दीवान के पास हो आवु ?
नही ऐसी गलती मत करना.. सीधा ही उनके सामने जाना ठीक नही.. थोडा ठहरकर..आप प्रतापसिंह के पास पहोच जाये वह दीवान का दाया हाथ है.. उनके साथ ही रहता है..दीवान की सारी योजना उसे मालूम है.. अगर दीवान कुछ करना चाहे तो वह प्रताप को ही कहेगा..दीवान के कानो में बात डालने का काम प्रताप के जरीये ही हो शकता है.. तुमने ठीक कहा रमेशचन्द्र..यही सही रहेगे.. हम दोपहर में ही प्रतापसिंह को मिलने के लिए जायेगे.
ओबोरॉय को अभी भी शंका तो थी ही..उसने अपना सूट पहन रखा था..वह एक व्यापारी था एक छोटे से कारोबार का मालिकथा उनकी रहनी करणी इस तरह हो गई थी, क्योकि उसे दूर दूर के व्यापारी के साथ अक्सर ही मीटिंग करनी पडती थी..
अपने यही अंदाज में वह प्रतापराय को मिलने जाने वाला था. कार चल रही उनके साथ साथ ओबोरॉय के मन में सोच की रफ्तार भी तेज हो रही थी !! क्या होगा ? क्या प्रतापराय से सुलह हो जाएगी ? दीवान के लडके की हालत अगर ज्यादा खराब होगी तो दीवान नही मानेगा !!
प्रतापराय का मकान थानगढ़ की हदमे था. हालाकि उनके मकान को छोटी हवेली भी कह शकते है. दीवान के पास जो पास वाले गाम थे उनका सारा कारोबार वह चलाता था और बिचमें से बहुत सारा हडप भी कर जाता था. इसलिए उनके पास धन की कोई कमी नही थी…
थानगढ़ और उनके आसपास के इलाके के नामचीन बदमाश लोगो की बड़ी फोज उनकी हवेलीमें पड़ी रहती थी रात को शराब, सुन्दरी की महफिल लगती थी. दीवान भी यहा आता था उसमे क्योकि वह अपनी हवेलीमें ये सब नही कर पाता था. उसने बाहर से अपनी शक्ल साफ सुथरी बना रखी थी.
थानगढ़ एक शहर और गाम के बिच जैसा था. क्योकि यहा पर गाव की चीज वस्तुए भी ओर कुछ कुछ स्थानों पर शहर की चमक दमक भी दिखती थी. रास्ते में कुछ लड़के और लडकिया शहर की आधुनिकता के रंग में रंगे हुवे कपड़े में सज्ज दीखते थे..
रमेशचन्द्र की कार को चलाने की जो कुनेह थी उनको देखते हुवे थोड़े समय में ही गड्डी थानगढ़ से दूर जाने लगी अब तो सडक के दोनों और हरेभरे खेत भी दिखने लगे थे. ओबोरॉय उनकी तरफ सोचता हुवा उसे देख रहा था..थोड़े खेत गये होगे की गड्डी लेफ्ट साइड में मुड़ी और एक बड़े गेट के करीब आ कर खड़ी हो गई. गेट के भीतर दूर दूर खड़ा हिवा आलिशान मकान दिख रहा था. दरवाजे पर दस्तक देते ही एक सिपाही जैसे कपड़े पहना हुवा एक आदमी आया.. वह ऐसे देखता हो जैसे घुर रहा हो..रमेश बहार आया और उसने सब कुछ बताया की वह प्रतापसिह से मिलना चाहता है. दरवानने बाहर ही रुकने को कहा..
प्रतापसिह बालकनी में खड़ा था उस समय दरवान ने निचे से कहा की कोई ओबोरॉय आया हुवा है.. वह मिलना चाहता है.. पतापसिह ने थोडी देर रुकने को कहा. और दीवान को तुरंत ही फोन लगाया.
दीवान इधर उधर चक्कर काट रहा था. वह अपने गुस्से को बलपूर्वक दबा रहा था..उसे ये भी अजीब सा लग रहा था की एक अकेला लड़का इस तरह से ७ से ८ लोगो को किस तरह से पिट शकता है. उसमे भी अपने बेटे की हालत देखकर एक क्षण तो दीवान खुद डर गया था. क्या पिटा है मेरे बेटे को.. क्या करू…क्या करू.. इस तरह से बार बार अपनी मुठ्ठी या बंध करता है..
तबही प्रताप की रिंग बजती है.. उठाता है.. सामने से आवाज आती है.. ओबोरॉय आये है..क्या करने का..? वह तुरंत बोल पड़ता है समजोता करलो उसे किसी भी तरह से अपने पक्ष में ले लो.. हालात अच्छे नही है..
अरे ये कैसे हो शकता है.. ? में तो चाहता हु, यही पर ही अबोरॉय को भी पिट देते..उन्हें भी मालूम हो की दीवान से पंगा लेना कितना भारी पड़ शकता है..! पागल मत बनो.. तुमने वो वीडियो नही देखी होगी..! क्या बल था विराक्ष का.. अकेले ही मेरे बेटे और उनके ६ से ७ साथीओं को भारी पड़ गया.. उनके हाथो की मार मेरे बेटे की हड्डीया हथोड़े की तरह तोड़ रहेथे. पीछे से कोई लकड़ी से वार किया तो वह भी उसने तोड़ दी. विराक्ष में कोई अकल्पय बाहुबल है..
दूसरा ये की ये मत भूलो की ओबोरॉय की पास वाले जंगल के सबसे बड़े कबीले के आदिवासी के साथ अच्छे सम्बन्ध है. कहा जाता है कि एक आदिवासी हमारे १५ लोगो को भी मार शकता है. क्योकि ये अगल ही जाति के लोग है. सुना तो ये भी है की विराक्ष का जन्म वह हुवा था. तो उनको मारने की बात अगर उस सुमाली को चुभ गई तो लेने के देने पड़ जायेगे.
दीवान स्थिति को तोल रहा था. उनकी यही दीर्ध सोच कभी काम आ जाती थी. आज उसे विराक्ष के इस कारनामे में एक भय लग रहा था. क्योकि किसी ने मोबाईल से बेटे को पीटने की वीडियो उतार ली थी हांलाकि उसे आगे फैलते हुवे तो उसने अटका दिया था लेकिन. ये उसे एक बड़ी आग की चिंगारी लग रही थी.
ओबोरॉय को ज्यादा इंतजार करना पड़ा. ये समय उनके लिये बहुत ही कष्टदायक था क्योकि बेटे के भावी की चिंता उसे खाए जा रही थी. तब ही किसी की थोड़ी करडाकी भरी आवाज उनके कानो में गूंजी ” आपको भीतर बुलाया है.. जल्दी जाओ समय कम है.. उसे कई और जाना है.. “
रमेशचन्द्र को बाहर ही रोक कर ओबोरॉय भीतर चले.. वह पूरी तरह चल नही पाते थे जैसे अपने पेरो को घसीट रहे हो.. भीतर जाने से पहले उसने अपने पहनावे को ठीक किया.. उनको एक बड़ासा दीवानखंड दिखा. उनके सामने उपर जाने का दादर था आस पास अलग अलग दिशा में जाने के मार्ग थे.
ये मकान बिलकुल हवेली जैसा था. लेकिन थोडा छोटा था. एक खुर्शी को खीच कर ओबोरॉय बैठे… थोड़े ही देर में प्रतापसिह कही से आ रहा था.. कहा से आया उनका ध्यान ओबोरॉय को नही चला.. उनकी बड़ा शरीर और मुछे उनकी शक्ति का प्रदर्शन कर रही थी…
उनका चहरा ऐसा था की जैसे थोड़े ही देर में वह किसी को मारने वाला हो.. आओ..आपका स्वागत है..इनके लिए कोई केसर दूध विगेरा लाओ अपने एक आदमी को कहता है.. दीवान के कहते अनुसार प्रताप शांत रहा था..
ओबोरॉय ने अपनी और से शुरू किया ” देखो मेने उसे बहुत समजाया, उस ने अपनी गलती मान भी ली है..बात को आगे बढ़ाने का कोई फायदा नही.. मानता हु की मेरे बेटे की बजह से उन्हें चोट हुई है.. लेकिन उसने भी कुछ किया होगा न.. खेर जो भी हो… आखिर तो दोनों बच्चे ही है.. हमे उन्हें माफ़ कर देना चाहिए…” ओबोरॉय अपनी मन की बात कहकर चुप हो जाता है.
प्रताप एक नजर से ओबोरॉय को जैसे घूरता हो ऐसे देख रहा था.. उसे देखते ही ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने गुस्से को दबा रहा.. फिर थोडा हाथ को हिलाते और शिर घुमाते बोला.. देखिये शेठजी ये आपके लिए ठीक नही…
आप ठहरे व्यापारी..आपको मालूम नही कुछ भी हो शकता है..!! फिर थोडा रुक के.. इसलिए थोडा सम्भल कर रहे.. कोई भी काम हो तो हमसे कहेना.. आपकी दोस्ती हमे पसंद है.. लेकिन दुश्मनों को हम जाने नही देते.. हो जाती है गलती किसी से भी..
आप सामने से आये.. अच्छा लगा.. लेकिन बार बार गलती माफ़ नही की जाती.. दीवान पहले तो आपसे रुष्ट थे लेकिन उसे भी लगा की ये बचकानी हरकत है.. उसे भूल कर हमे आगे सम्बन्ध बढ़ाने चाहिए.. उनकी एक बेटी है उनके और आपके बेटे के बारेमे वह थोडा गम्भीर है.
दीवान की एक बेटी थी सुनैना.. दीवान ने ऐसा सोचा था की विराक्ष का विवाह अगर उनकी बेटी से कर दे और विराक्ष को घरजमाई रखे तो बात बन शकती है. विराक्ष जैसा ताकत वर युवान अपना दामाद बन जाये तो उनकी इस सलतनत में चार चाँद लग जाये
आप दीवान के समधी भी हो शकते हो और दुश्मन भी फेसला आपके हाथ में.. जरा सोच समजकर कहना.. हमे आपके फेसले का इंतजार रहेगा.. इतना कहकर वह तो चल पड़ता है
ओबोरॉय को तो ये एक स्वप्न जैसा ही लग रहा था.. इतना आसन हो जायेगा वह तो उसे मालूम ही नही था.. वह जल्दी जल्दी बाहर निकल गया.. उसे जल्दी थी रमेशचन्द्र को कहने की क्योकि उनकी तर्क बुध्धि ऐसी चालो में ज्यादा दौड़ती थी..
गजब हो गया रमेशचन्द्र !! ओबोरॉय आते ही बोल पड़ा.. हम सोचते है ऐसा कुछ नही हुवा.. हमारा विराक्ष तो नसीबवाला निकला… दिवानके लडके की पिटाई विराक्ष की किस्मत का ताला खोलने वाली निकली..!! दिवान की बेटी सुनैना की सुन्दरता की चर्चा तो अक्सर थानगढ़ में होती रहती..! यही लड़की और दिवान जैसा मजबूत समधि दूसरा कौन हो शकता है.. ? व्यापारी मानस बोल पड़ा…
रमेशचन्द्र ने सबकुछ सुना फिर धीरे से कहा..”मुझे लगता है की दिवान थोडा डरा हुवा है.. ” रमेशचन्द्र जबभी विराक्ष का कदावर शरीर और शक्ति देखता था तब वह भी थोडा मन ही मन डर जाता था. ये लड़का कुछ कर बैठेगा.. दिवान भी यही सोच के कारण ये सब चोचले कर रहा है.. वह अपनी बेटी के जरिये अपना भावी निष्कंटक कर रहा है..
कोई भी फेसला लेने से पूर्व हमे थोडा सोचना चाहिए.. मेंरा मानना है वहा तक हमे विराक्ष की पढाई का बहाना बना कर बात को थोड़ी जगह दे देनी चाहिए.. उस तरफ देखा जाये तो विराक्ष तो मान गया है.. उनकी ओर से कोई खतरा नही है…
एक दो साल के बाद हम विराक्ष को रामगढ़ भेज देगे.. और फिर सोचेगे ये नये रिश्ते के बारेमे.. और हा.. विराक्ष को भी कुछ नही कहना.. उनकी पढाई पर असर हो शकती है.. फिलहाल तो इस पर रोक लगा देनी चाहिए.. रमेशचन्द्र ने एक ही साँस में अपनी राय सुनादी..
रमेशचन्द्र ने इसलिए सोचा की कोई भी व्यक्ति बिना बजह अपने बेटे को पीटने वाले से बेटी की सादी नही करना चाहता !!
जब कोइ भी व्यक्ति हमे जरूरत से ज्यादा भाव देने लगे तो हमे चोक्कना हो जाना चाहिए
रमेशचन्द्र की बाते सुनकर
इस और विराक्ष इधर उधर दौड़ रहा था. उसे ये बात मन ही मन बहुत लग गई थी की उनके पास शक्ति है बाहूबल भी है लेकिन वह अकेला है न तो उनके पास इतने आदमी है और न तो एक पूरी व्यवस्था जो दीवान के पास मोजूद है..
इसलिए पहलेतो एक सेना तैयार करनी होगी फिर दीवान को चुनोती देनी होगी. बिना शक्ति के इस प्रकार के छोटे मोटे कारनामे एक बुझदिली है. फिलहाल भूगर्भ में चला जाना ही बहेतर है.