- Episode-1 विराक्ष के जन्म पूर्व की घटना क्या हुवा उस समय ओबोरॉय के साथ ?
- Episode-2 दीवान खंड में विराक्ष को रमेशचन्द्र ने समजाय
- Episode-3 प्रतापसिंह को मिलने ओबोरॉय और रमेशचन्द्र चले
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Episode-2 दीवान खंड में विराक्ष को रमेशचन्द्र ने समजाय
ओबोरॉय दूर दूर तक दिखती पहाड़की हारमाला को देखता हुवा सोचमें डूब गया था !! पुरानी यादे चीटीओं की तरह एक के बाद एक बाहर आती रही थी..फिर से सुमाली, डाली.. वे सुनसान तूफ़ानी रात..मरा हुवा बच्चा.. इन सब यादो में ओबोरॉय धीरे धीरे बाह्य दुनिया में से स्वप्न की दुनिया में चला जा रहा था !!
एका एक पीछे से किसीकी बोलने की आवाज आई..ओबोरॉय को अभी ऐसा ही लग रहाथा ये आवाज भी उनकी यादो का भाग है.. लेकिन उनकी यादे तो तब टूटी जब पीछे पापा.. कहकर किसीने छुआ.. अचंबित हो कर पीछे मुड कर देखता है तो तरुण विराक्ष अपने मजबूत हाथो से उनको छू रहा था..
ओबोरॉय का ध्यान धीरे धीरे टूटने लगा सामने दिख रही हकीकत के साथ वह अपनी यादो को जोड़ने की कोशिस करने लगा.. क्या ये सच किया या झूठ ? उनका फेसला अभी भी उनके दिमाग में जंजावात की तरह धुमराता रहा था..
लेकिन जब सावित्रीभी कमरे में आई ओर उसने ताना मारना शुरू किया की उनकी ये सभी यादे गायब हो गई.. वह अपने जीवन में जैसे वापस आ टपका था..
क्या हुवा ? क्यों चिल्ला रही हो..? अपने लाडले से ही पूछो क्या करके आया है..!! क्या जरूरत थी उन दीवान के बदमाश लडको से पंगा लेने की..छोटी उम्र में विराक्ष के बड़े कारनामे धीरे धीरे बाहर आ रहे थे..
अभी तो करीबन १५ साल का लगभग हुवा होगा..की 25 साल के उम्र वाले जैसा काम करता था.. वीरू की एक ही दुर्बलताथी वह झूठ को सहन नही कर शकता था.. कोई अगर उनके सामने किसी innocent (निर्दोष या दुर्बल) को परेशान करे तो वह उन पर टूट पड़ता था..वह सीधा सादा और केवल सहन करता रहे ऐसा नही था..
बचपन से ही अन्याय के सामने लड़ना और उनको खत्म करने का स्वभाव न जाने कहा से उनमे आ गया था..हलाकि वह बहुत ही मृदु और विवेकी था.. सरल और सहज था..कोई अगर उसे मित्रता करे तो जान दे कर भी निभानेवाले में था.. लेकिन अगर कोई दुसरो को परेशान करे तो उन्हें मंजूर नही था..
उनके हाथ, शरीर और पैर उनके जैसे आयु वाले बच्चे से कई गुना ज्यादा बलवान थे..वह कुछ असाधारण रूप से उचा और कदावर शरीर वाला था..लोगो का कहना था की विराक्ष का एक घूँसा इतनी भारी पडता थी की जिसे लगे वह लम्बे समय तक उनकी असर से बहार नही निकल पाता…
ऐसे स्वभाव और दुसरो को बचाने के चक्कर में बार बार वह फंस जाता था. अक्सर ऐसा ही होता है. निर्बलता को अभिशाप बनाने में अत्याचारीओं का हाथ रहता है. उनका जो कोई विरोध करे उसे बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है.
हालाकि, यहा यह भी इतना ही सही है की दुराचारी का दुराचार इसलिए पनपता है, की अच्छे लोग उनका विरोध नही करते उनसे दूर भागते है. अगर विरोध होता तो वह नही टिक पाती क्योकि वह मुठ्ठीभर ही होते है. बुराई जितनी एकझूट हो जाती है उतनी अच्छाई एकझूट नही हो शकती.
लेकिन अगर कोई ऐसा नेता मिल जाये तो उनके पीछे अच्छाई एकत्रित होंने लगती है और बुराई को नेसनाबूद करती है. यही बात इश्वरीय या कोई महान आत्मा के अवतार पर लागु होती है. समय समय पर ऐसा होता रहता है. कोई ऐसी शक्ति जरुर है जो इस तरह balancing बनाती है.
दीवान थानगढ़ में बुराई की वह जड़ थी जिसे काटना जरूरी था लेकिन कोई आगे नही आताथा. शुरू शुरू में तो दीवान अच्छाई का नाटक कर रहा था लेकिन जब उनके बदमाश बेटे ने गलत रास्ता पकड़ लिया तब दीवान भी धीरे धीरे उनके पीछे चलने लगा !
दीवान अकेला नही था. उनके साथ दुसरे गाव के सूबेदारभी थे. बदमाश बेटे ने धीरे धीरे अपनी दुष्ट सेना भी बना रखी थी. !! उनको बचाने के लिए दीवान स्वयम, मंगलसिह, बगलवाले गाव का मुख्या प्रतापराय, लाखा और बड़ा घातकी अर्किला था.
दीवान के पास काफी सारी जमीन थी और बहुत सारे गाव वाले उनके कर्जदार बन गये थे. कोई भी उलटा सुलटा तरीका अपनाकर वह गाव वालो की जमीन हडप लेता था. कभी कभी किसीको आजीवन गुलाम जैसा बनाताथा और लडकीयो के सोदे भी करता था.
लोगो में आक्रोश बहुत ज्यादा था लेकिन उनके सामने बोलने की हिम्मत किसी में नही थी. क्योकि वे धीरे धीरे ज्यादा से ज्यादा बलवान होता जा रहा था. !!
इस तरह के लोग किसी भी तरह अपनी पाप कमाई इकठ्ठी कर लेते है ! उस कमाई के जरिये ही वह बहुत सारे लोगो को इकठ्ठा कर लेते है. दीवान ने भी यही किया था उनके पास सब कुछ था ऐसे लोगो की सेना भी और पैसा भी !!.
सावित्री फिर से ओबोरॉय के पास आती है और कहती है, ” मेंरा मानना है आप दीवान से मिलो और अपने बेटे की करतूतों की माफ़ी मांग लो.. अगर दीवान ने कुछ किया तो.. हमारे बच्चे की जान को खतरा है.. ” हा, सावित्री तुमारी बात सही है ये दुष्ट कीसी भी हद तक जा शकता है.
हम ठहरे व्यवसाई और इस तरह की मारपीट, खून खराबा हमारे लिए अच्छा नही. ये हमारे जान और माल दोनों के लिए खतरा पैदा कर शकता है !! अब कुछ करना ही पड़ेगा… सावित्री तुम बाहर जा रही हो तो देखो रमेश अगर इधर उधर हो उसे मेरे पास भेजना..
रमेश धीरे धीरे आता है, उनके हुलिए पर गंभीरता दिखाई पड़ती है..आओ रमेश मेंने तुम्हे बुलाया है .. वीरू के बारेमे तुमने क्या सोचा है ? क्या मुझे दीवान से मिलना चाहिए या नही ? क्या वीरू की करतूते बंध होगी ? उन्हें कुछ होगा तो नही न ? एक साथ बहुत सारे सवाल पूछने के बाद अंतिम सवाल पर ओबोरॉय थोड़े डिम पड़ गये..उनके पुरे शरीर में से एक कम्प की लहर दौड़ पड़ी..
रमेश ने गहरी साँस ली और धीरे से कहा थोडा सोचने दो..
कहा है हमारा राजकुमार ? सच यह था की वीरू में रमेशचन्द्र की जैसे जान छिपी थी.. दिन में एक बार तो वह कोई भी बहाना करके उसे मिलता ही था.. बचपन से उसने उसे बड़ा किया था.. स्कुल जाना हो, कोई जगह पर बाहर जाना हो, रामगढ़ पर कोई काम पर जाना हो तो भी वीरू को घुमने के लिए साथ में ले लेते थे..
विराक्षभी उसे बहुत ही घुल मिल गया था. कभी कभी तो कोई ऐसी बात, वह सीधे ही अपने पिता को कहने के बजाय, रमेशचन्द्र को कहता था..किसी से कोई लड़ाई झगड़ा हो जाये तो भी रमेशचन्द्र की सूझ ही काम आती थी..
सावित्रो को तो कभी कभी अच्छा भी नही लगता !! फिर भी रमेशचन्द्र लड़के पर दीवाने हो गये थे..हलाकि विराक्ष कोई अद्भुत लड़का था..गाव मेंभी उनके दीवाने के आंकड़े कम नही थे..
इधर उधर देखते हुवे रमेशचन्द्र थोड़े अधीर से हो गये.. सुबह दौड़ने गया था सायद बाथरूम में स्नान करता होगा.. अभी आएगा.. थोडा रुककर.. रमेश !! में क्या कहता हु की तुम उनसे बात करो शायद समज जाये..नइ चमक के साथ बोल पड़ते है…
फिर चुप हो कर थोड़े दूर चले जाते है.. तब ही बदन पर केवल तोलिया पहने वीरू दिखाई पड़ता है.. उनका ऊपर का खुला वक्ष स्थल बहुत ही सुंदर दिख रहा था..उनकी चौड़ी और भरावदार छाती, उन पर टिकी हुइ मजबूत बाहे शक्ति का प्रदर्शन करते दीखते थे..उनका सीना और हाथ ऐसे दिख रहे थे जैसे लोहे के बने हो..
अभी स्नान करने के कारण उनके बाल बिखरे हुवे थे और आगे आ गये थे, उनमे से थोडा थोडा पानी टपक रहा था वह उनके चेहरे को और मनमोहक बना रहे थे.. आओ वीरू कहकर बहुत प्यार से रमेश चन्द्र ने पहले उनका हाथ पकड़ा और फिर अपने हाथो से उनको थोडा गले लगाया…
उस वख्त विराक्ष की छाती और भुजाऔ में दौड़ता हुवा गरम खून की गरमी का अहेसास उसे हुवा.. उसने विराक्ष को सोफे पर बैठने को कहा लेकिन वह भीगा हुवा था इसलिए..वीरू एक लकड़ी की खुर्शी पर बैठा.. ओबोरॉय दूर से सब कुछ देख रहे थे और सुन रहे थे..की रमेशचन्द्र क्या बोलता है.
रमेशचन्द्र फिर से उनके करीब आया और उनके गिले बालो को थोडा सहलाया या फिर उनकी आखो में देखकर बोले.. वीरू बेटा ये तुम क्या कर रहे हो ? खुले बदन और भीगे होने के कारण वीरू थोडा शरमाता था.. वह रमेशचन्द्र को बड़ा आदर देता था..
अंकल मेने कुछ गलत नही किया.. उसने ही गाव के उस गरीब लडके को पीटना शुरू किया.. गलती उनकी थी..मेने उसे बहुत समजाय फिर भी न माना तो लगा दिए दो चार.. बहुत ही आसानीसे विराक्षने बोल दिया.. देखो !! अंकल.. जी ! में किसी को इस तरह अत्याचार करते नही देख शकता. मेरा खून खोल उठता है और में अपने ही वश में नही रहता…
अनुभवी रमेशचन्द्र समज गये थे की वह नही मानेगा, इसलिए उन्हों ने थोड़ी टेढ़ी चाल चली… देखो बेटा !! में यह नही कहता की तुम झूठे हो लेकिन.. आज तुम जो कर रहे हो उनका कोई मतलब नही है.. इनसे तो तुम्हारे पिताजी, उस लडके पर और गाव वालो पर भी दीवान टूट पड़ेगा..
तुम जरा सोचो तुम्हारे पास क्या है.. तुम्हारा ये शरीर और केवल तिन चार टूटे फूटे मित्र.. उनसे क्या होगा ? दीवान का तुम कुछ नही बिगाड़ पाओगे.. ये तो नादानी है.. ये कोई अकलमंदी का काम नही है … दीवान के पास तो पैसा है, कितने आदमी है, सूबेदार भी है, सत्ता भी है एक बड़ा जमला उनके साथ तैनात है..
तुम्हे तो वह यु.. ऐसा कहते हुवे रमेशचन्द्र वीरू को अपने सिने से लगा लेते है.. उनकी आखो में आसू आ जाते है.. बेटा सम्भल जा.. रुक जा छोड़ दे ये नादानी.. जब तुम उनके थोड़े बराबरी के बन जाओ फिर उनका मुकाबला करना आज नही.. अगर तुम्हे कुछ हो गया तो हम क्या करेगे !! रमेश ने बेखुबी से टालने की कोशिश की !!
रमेशचन्द्र तो यु ही बोल रहा था. लेकीन विराक्ष बात को बहुत ही गम्भीरता से ले रहा था..उनकी आँखोंमें जैसे सचमे उनसे ये भूल हो रही है, ऐसे भाव चमक रहे थे.. वो बातो से डरा नही… लेकिन खुदकी कमजोरी और दीवान की ताकत की बाते उन्हें काफी हद तक चोट कर गई..
उसे लगा की अंकल की बात में दम तो है..इसलिए वह जैसे सब समज गया हो ऐसे..अपना शरीर रमेशचन्द्र से छुडवाकर दूर निकल गया..फिर मुड के कहता भी गया.. अच्छा में अब कुछ नही करुगा लेकिन.. पूरी ताकत आने पर करुगा.. रमेशचन्द्र को लगा की आफत टली..
ओबोरॉय मन ही मन सोच रहे थे की रमेश उसका दुश्मन है या मित्र !! उसने तो चिंगारी को हवा देने का काम किया !! अपने बेटे को ज्यादा उकसाया ! जैसे ही वीरु गया की वह नजदीक आये, उसने कहा “अरे तुम कैसे हो ?? ये तूने क्या किया अच्छा किया या बुरा ! मेरे तो समज में कुछ नही आता..
रमेशचन्द्र ओबोरॉय के सामने आता है, उनकी आँखों में आँखे डालकर बोलते है..” शेठजी, आपने वीरू की जोशीली आँखे, उनका मजबूत कदावर शरीर और जुस्सा देखा नही है..इसलिए कहते हो.. विराक्ष हवा होती तो में रोक देता ये तो तूफान है.. उसे रोका नही जाता लेकिन मोड़ा जाता है..
वीरू अब कुछ नही करेगा और अगर वह दीवान जैसा शक्तिशाली बनना चाहे तो भी उनमे काफी साल लग शकते है.. और हम उसे पढाई का बहाना बनाके रामगढ़ भेज देगे.. वहा उनका दाखला कोलेज में करा देगे.. फिर तो सब कुछ खत्म..अपने दिमाग में पनप रही भेदी योजना के बारेमे रमेशचन्द्रने कहा
वाह ! वाह ! रमेशचन्द्र !! मुझे अब पता चला की में तुझे क्यों चुनता हु.. तुम मेरा सच्चा साथी है ये कहकर वह रमेशचन्द्र के गले लग जाता है. लेकिन वास्तवमे कुछ और ही था रमेशचन्द्र की ये सलाह वीरू के लिए तो एक नई जंग का एलन था..