सोच ही सब कुछ किस तरह से है ? हमने बहुत सारे लोगो को ये कहते हुवे देखा है की सोच से ही सब कुछ होता है तो क्किया ये सच है आओ जाने फिर हम किस तरह से हमारी सोच को उपर उठाये ये भी समजेगे.
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सभी क्रिया का प्रारंभ
आप जरा सोचे की आप कोई भी क्रिया करते है उनसे पहले आप सोचते है. एक builder make map before construction वह नक्शा तैयार करता है फिर उन पर बड़ी इमारत तैयार करता है. उसी तरह से हम भी सोचते है बादमे कुछ करते है.
ये बात इतनी जल्दी में हो जाती है की हमे मालूम ही नही होता की हमने कब सोचा और कब किया ! उनका मतलब ये हुवा की हमारे आसपास की सभी चीज वस्तु ऐ पहले किसी न किसी के दिमाग में आई तो होगी ही.
जो कोई पकड़ा जाता है बुरे काम में वह accept करता है की उसने काफी समय से ऐसा सोचा था. आधुनिक विज्ञान भी कहता है की हमारे दिमाग में एक चित्र की भांति सबकुछ उत्पन्न होता है फिर हम उसे बाहर प्रगट करते है वही हमारा कार्य हुवा.
जो भी हो लेकिन हमारा विषय है की एक सोच ऐसी रखनी चाहिए की हमारा जीवन ही पूरा बदल जाये. नियमित रूप से दिव्य और कुछ बड़ा सोचे तो आप अपने आप ही जान जायेगे की मेरे जीवन में कुछ बदलाव आ रहा है. हा ये प्रतिस्पर्धी न होनी चाहिए
मतलब की आप थोड़े समय के लिए positive रहे और फिर से थोड़े समय के बाद negative ! सोच आपस में टकराती रहे ऐसा नही करना है. लेकीन अपने आप को दिव्य समजे और एक दिव्य अस्तित्व का एक अंश ही समजे. मुझे कुछ बड़ा करना है. उनके लिए में महेनत करुगा ऐसा बार बार सोचे और करते रहे.
खासकर के सुबह के समय में इस तरह का सोचे ! या अपन मस्तिष्क को खाली करदे ! कुछ न सोचे और दिव्यता में एकरूप हो जाये ये भी एक बड़ी सोच है. जैसे जैसे आप बिना सोचे इस तरह से अपने आप में खो ते जाओगे एक दिव्य सोच आपमें अपने आप प्रगट होगी वही आपका भावी निर्धारण कर शक्ति है.
ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिए की सोच पर आपकी पकड इतनी ज्यादा नही होती. आप बार बार अलग अलग विषय पर बिना कोई बजह मतलब की बिना कोई हेतु भी सोचते रहते है. कभी कभी तो आपको ऐसा भी लगने लगता है की अरे मेंने ये सोचा था