Dukh dur karneke upay|pareshani dur karne ke upay in hindi

Dhukh dur kaise ho jaye unke liye kya soche ?

क्या आप दु:खी है ? आपको कोई मुश्केली है ? क्या आप परेशान है ? कोई आपको परेशान कर रहा है ? आप आने वाले दिनोसे भयभीत है ? मुश्केली का अंत करना चाहते है ? तो यह ब्लॉग आपही के लिए लिखा गया है ऐसा मानिये !!!

अरे ! यह क्या बात हुई भाई ! आज कल हरकोई परेशानीओं से जुज़ रहा है. तो उत्तर भी एक ही होगा की हा, भई में परेशान हु. कोई शरीर के स्तर पर तो कोई मन के स्तर पर परेशान है. कोई बिमारीसे जुज रहा हो ऐसा भी हो शकता है. लेकिन शरीर से बीमार होने के बदले मन से बीमार होने की मात्र कई गुना ज्यादा है.

टेंशन में होना एक फेशन सा हो गया है. जिसे भी पूछो एक ही बात कहता है की भई में बहुत टेन्शन में हु. कोई अन्य लोगो से भी टेन्शन में हो शकते है. अरे कभी कभी दुसरो से ज्यादा अपने लोगो से tension ज्यादा होता है ! में तो यहाँ तक कहता हु की majority लोग ऐसे है की खुद ही अपने आप को ही दु:खी करते है ! यहाँ केवल गरीब ही टेंशन में है ऐसा नही है. अमीर भी टेंशन में हो शकते है और उन्हीके  कारन मन ही मन दुःख का अनुभवभी करते है. भय, चिंता, उद्वेग, ट्रेश, शारीरिक स्तर पर बीमारी यह सब सामान्य है. कोई खरी खोटी सुना कर भी दुखी करता है.

दुःख दूर करनेके उपाय

जो भी हो यहाँ हम सर्व सामान्य दश उपाय बतायेगे जो आप के दुःख को काफी हद तक दूर कर शकते है. में यह नहीं कहता की आप तुरंत ही दुःख से मुक्त हो जाओगे लेकिन. आपको नया रास्ता मिलेगा. दुःख में राहत मिलेगी और धीरे धीरे करके आप उसमें से मुक्त होते चले जाओगे. लेकिन आपके स्तर पर भी प्रयास होना आवश्यक है. क्योकि प्रकृति का एक नियम है की जो घटना शरु हो गई है उन्हें एक ही झटके में खत्म नहीं किया जा शकता. जैसे गोल गोल full speed से फिरता हुवा पैया एक ही झटके में रुकता नही है धीरे धीरे उसमे कटोती होती है. आखिरमे वह थंभ जाता है. इस तरह से आपके दुखो को भी हल किया जा शकता है. .

ये दो उपाय जो आपके दु:खो को मिटाने का प्रारंभ कर शकता है.

पहला उपाय तो बहुत आसन सा है की हमारा ब्लॉग पढ़ते रहिये. क्योकि योगा के माध्यम से हमें काफी हद तक एक अनोखी strength मिलती है जो हमारे दुःख में साथ देती है इतना ही नहीं एक दिव्य चेतना का वातावरण निर्मित करती है जिनके जरिये हम परिस्थिति से छुटकारा पा शकते है. योग के अभ्यास के लिए click here-> yoga sutra in simple way

अब हम वह १० उपाय जो हमारे मन को दुःख के अनुभवसे काफी हद तक मुक्त कर शकते है उनके बारेमे सोचे. 

Duniya Mein Kitna Gham Hain..mera gam kitna kam hai..

में दावे के साथ कह शकता हु की अगर आप तुलनात्मक अभ्यास शरु करे तो आपको अपना दुःख कुछ भी नहीं लगेगा. प्रकृतिमे परिस्थितिया change होती ही रहती है लेकिन जो हमारे अनुकूल न हो उसे हम दुख मानते है. दुःख एक परिस्थिति है जो प्रकृति में होती ही रहते है लेकिन वह हमारे अनुकूल नही है इसलिए हमें दुःख लगता है. किसीभी महान व्यक्ति के जीवन में अरे उनकी बात क्या करे स्वयं भगवान के जीवन में भी अनेक दुःख और परेशानीया आई थी. राजपाट छोड़कर भगवान श्री रामको वनमें जाना पड़ाथा वहभी १४ साल के लिए. अमेरिका के भुतपूर्व राष्ट्रपति ओबामा को भी बचपन में कई सारी कठिनाई जेलनी पड़ी थी. मतलब की “दुनिया में इतना गम है.. मेरा गम कितना कम है.. यही सोच हमारे दुखो को दूर करने में काफी है.

दुःख की स्थिति को एक chance समजकर जीवन बदल देना..

सबसे ज्यादा और बहुत अच्छी सोच है यह. प्रकृति का एक सिध्धांत यहा पर काम करता है की कोईभी क्रिया के दो पहेलु अवश्य होते है लाभ और हानि अगर हम उसमे लाभ को खोजले तो हमारे लिए ये दुःख एक chance हो जायेगा आगे बढ़ने के लिए. मन ली जिए किसीका पैर फिसल गया और उन्हें फेक्चर हो गया. ये बात दुःखकी है.

लेकिन अगर इस समय में वह अपने आपमें कोई नई कला विकसित हो ऐसा सीखे, या बैठे बैठे internet के माध्यम से कुछ नया सीखे, या अपने आप में क्या कमजोरी है उसे ढूढ़कर उससे कैसे निपटा जाये ये सोचे तो उनकी यह समस्या एक chance बन जाएगी. हो शकता है उनकी पूरी life ही change हो जाये !!

भगवान श्री रामचन्द्रजी ने अपने वन गमन को एक chance मान लिया और अनेक मुनिओं के पास बैठकर ज्ञान अर्जित किया. इतना ही नहीं उत्तर से लेकर दक्षिण की यात्रा की. आतताई रावण का नाश किया. अगर सायद वह महेलमें ही रहे होते तो यह सब नही कर पाते. मान लीजिये किसीकी नोकरी चली गई. उसे बहुत दुःख होगा लेकिन अगर उस समय में वह नया start-up चालू कर दे तो ?? हो शकता है वह भविष्यमे यह कह शकता है की अच्छा हुवा भाई मेरी नोकरी चली गई !!!

दुःख को अपने मन पे हावी न होने दे.

अगर हमें कुछ नया सीखना है तो थोडा समजने का प्रयास करना होगा. क्योकि यहा पर जो कुछ लिखा जायेगा वह आपको थोडी मानसिक कसरत जरुर देगा. मूलतः ऐसा है की सारा जीवन और हमारी सोच सबकुछ कोई एक बड़ी तकनीक से हो रहा है. हमें ये सब मालूम नहीं है और हम खामखा मन ही मन दुखी हो रहे है. ये सब समजाने के लिए हमने योगा का सहारा लिया है. आगे जाके सारे योग के प्रमुख सूत्र का सहज अर्थ यहाँ पे लिखा जायेगा. अगर हम कहते है की दुःख है उनका मतलब यह नही होता की हम दुखी ही है !! हो शकता है दुःख हमारे मन पर जरूरत से ज्यादा हावी हो गया हो ?

दुनिया का कोन ऐसा है जो कुछ न कुछ परेशानी से घिरा न हो. लेकिन जब हम दुःख को परेशानी को हमारे शिर पर सवार होने देते है तो यही दुःख हमारे लिए पहाड़ सा हो जाता है. जब भी कोई विपरीत स्थिति उद्भव होती है तो हम बार बार उनके बारे में सोचते रहते है. उसी के कारण यही सोच हम पर धीरे धीरे हावी हो जाती है. मतलब की दुःख के बजाय दुःख का चिंतन हमें ज्यादा परेशान करने लगता है. में बहुत दुखी हु ऐसा निरंतर सोचते रहने से हमारा दुःख बढ़ जायेगा. हम भीतर से तूट जायेगे. यहा पे fanda यह है की हमे दुःख के समय किसी भी हालत में हमारे मन को इन सारे दुःख के विचार में उलझाये रखना नहीं है. इनके बदले मन को बार बार इन परिस्थिति से अलग करते रहना है.

मन यहाँ पे दो काम एक साथ नहीं कर शकता

मतलब की यहाँ पे यह होगा की एक साथ मन दो काम नही कर शकता अगर वह निरंतर ऐसा सोचने लगा की अरे में बड़ा दुखी हु, अरे मेरी किस्मत ही फुट गई है तो तुरंत उसी क्षण वह बेचेंन हो जायेगा और आनंद तो पल में चला जायेगा. क्योकि जिस जगा पे आनद था वहा अब दुःख के ख्यालो ने डेरा डाल दिया !! हम इसी बात को उल्टा शकते है की अगर वास्तव में दुःख हो तो भी हम मन को दिव्य चिन्तन और आनंद की सोचमे रखे तो तुरंत ही दुखका ख्याल धीरे धीरे हटता जायेगा.

जो परिस्थिति आई है वह हमे इतना परेशान नही करेगी जितना वह मन पर हावी होने से होती है. यहाँ पर फंडा यह है की हमें मन को दुःख के विचार से तुरत दूर कर देना है. अपना ध्यान दूसरी दिसा मा divert करते रहना है. आप योग का प्रयोग कर शकते है इनके अलावा दुसरे कई उपाय है जिससे हम हमारा ध्यान दूसरी ओंर ले जा शकते है. योग एक करगत इलाज इसलिए है की योगा हमें मन से दूर ले जा कर हमारे दिव्य अस्तित्वका ज्ञान कराता है. में अपनी बात करू तो मेरे पास चलने की शक्ति नहीं है फिर भी में आनद का अनुभव और दिव्यता का अनुभव कर शकता हु.

परिवर्तन को समजना यही समजदारी

परिवर्तन एक ऐसा शब्द है जो हमें कभी अच्छा लगता है तो कभी बुरा. हमें एक बात जरुर समजनी होगी की जीवन और परिवर्तन दोनों पर्यायी है. किसीका जीवन भला ऐसा हो शकता है की उसमे परिवर्तन न आया हो !! हमारे शरीर को देखे तो समजना आसान है की जन्म से लेकर बुढ़ापे तक कितनी बार हमारा यह शरीर बदलता रहता है.

यह सब रात दिन की तरह निरंतर घटित होता रहता है. किसीको रात पसंद है तो रात ही रहे ऐसा नही है और कोई दिन को पसंद करता है तो दिन ही रहे ऐसा भी नहीं है ये प्रवाह तो निरंतर व्यतीत होता है. इसी तरह से हमारा जीवन भी सुख और दुःख की धुप छाव में से गुजरता रहता है. ये बात समजना यही एक परिपक्व सोच है.यह पर कोई यह सोचकर बैठ जाये की मेरी स्थिति हर हमेशा एक जैसी ही रहे तो यह कभी नहीं हो शकता.

हमे अपने आपको आने वाले परिवर्तन से ready रखना होगा तब ही हम इस जीवन में हर हमेशा खुश रह पायेगे. मान ली जिए अगर कोई युवान ऐसा सोचे की में बुढ्ढा होना ही नही चाहिए तो क्या ये हो शकता है ? नही, क्योकि हर कोई बढती उम्र के साथ old तो होगा ही !! लेकिन अगर आप बढती उम्र का लाभ लेकर अपना अलग ही कोई अंदाज रखे मतलब की यही वृधावस्था में हमारे भीतर नई दिशा या नई ताजगी लाये तो हम सुखी रह शकते है. मतलब की समय के अनुरूप हम अपनी strategy बदले तो यह हो शकता है. हर कोई जिव को जन्म, जरा, व्याधि, मृत्यु.. अनुभव होता ही है. इने स्वीकार कर आगे की और सोचना ही बुध्धिमानी है.

Consider your work as your comfort

अगर आप काम से भागते है और ज्यादा काम आने पर दुखी हो जाते है तो यहा एक रास्ता यह है की अपने काम को meaningless न समजे. दुनियामे सबका काम जरूरी है क्योकि एक का काम दुसरो पर आधारित है. अगर कोई छोटा आदमीभी अपने काम को छोटा समजे और अपने को मामूली समज कर मनमे मायूसी का अनुभव करे तो यह गलत है.

क्योकि उनके काम के बिना आगे का काम नही हो पाता. सफाई का काम करने वाला अपने को छोटा समजे तो.. हम जान शकते है की बिना सफाई के जीना मुश्किल हो जायेगा. इसलिए अपने आप पर और अपने काम का मन ही मन गौरव लेना चाहिए. हमारे काम को ही हमारा शोख मानना है. काम में ही सच्चा आराम छिपा है ऐसा सोचने से अगर ज्यादा काम आभी जाये तो भी मनमे तकलीफ का अहेसास नही होगा.

हमारे पास जो नही है उनके लिए रोना और जो है उनका आनंद न लेना हमेशा दुःख देवा है

सतोष और असंतोष के बिच बड़ी बारीक़ रेखा है. कोई कोई लोग ऐसा सोचते है की सतोष प्रगति को रोकता है. लेकिन यह पर एक बात जान लेनी है की सभी के जीवन में कभी न कभी तो पूर्णविराम आएगा ही. प्रगति की भी एक सीमा है. पैसे की भी एक सीमा है. अगर हम हमारे पास जो कुछ भी उनको नजरअदांज करे और सारा दिन अपने पास जो नहीं है.

उनके लिए सर पिटते रहे तो हमारे लिए सुख आना मुश्किल है. जब भी दुःख आये तब हमारे पास जो है उनसे हम एक प्रकारका संतोष मानना चाहिए. क्योकि इस दुनिया में हम देखे तो हमारे से की गुना ज्यादा दुखी लोग रहते है. और इनमे से की लोग तो बड़े आनंद से जीवन जी रहे है. एक हम ही है की जरा जरा सी बात पर दुखी होते रहते है. इस बात पर विचार करना चाहिए. क्योकि अगर मन एकबार इन विचारोमे उलझ गया तो उसे बहार निकलना मुस्किल हो जायेगा.

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मन से सारे विचार और चिंता छोड़कर शांत जगा पर बैठ जाये

चिंता, दुःख, हताशा एक ऐसा माहोल खड़ा करता है की इन्सान को पूरी तरह से जकड़ लेता है. उनका मन बेबस हो जाता है. दूसरा कोई ख्याल उसे आता ही नही. यहाँ पर भी योग का एक उपाय जो में यहाँ पर बताने जा रहा हु !! स्थिति कोईभी हो योग हमारे बड़ा काम का है. इसलिए तो मेने ये blog शरु किया है.

स्वामी विवेकानंद जो अपने भावी कार्यक्रम के बारेमे सोचमे पड़ गये थे तब उसने कन्याकुमारी नामक स्थान पर जाके एक बड़े चट्टान पर बैठ कर ध्यान लगाया था. यही पर उन्हें स्पष्ट रूपसे दिखाय दिया की उसे क्या करना है. में आपको दावे के साथ और बड़े ही अनुभव के साथ कहता हु जब सब कोई साथ छोड़ दे तब अपने आंतर मन में जाकना चाहिए जरुर रास्ता मिल जायेगा !! नई सुबह का सूरज जरुर निकलकर आएगा.

दुख के इस समय को बार बार मन में न लाना और समय को बस बीतने देना चाहिए

कहते है की समय से ज्यादा दुःख दूर करने का इलाज कोई नहीं है. अगर कुछ न सूजे और सारे प्रयास व्यर्थ हो जाये तो बस साक्षी भाव से समय को बीतने दे. ये समय भी चला जायेगा यह बात याद रखे.

आखरी उपाय है परम कुपलू इश्वर पर अतूट विश्वास रखना चाहिए

यहाँ पर विराम लेते है अगर लिखते ही जायेगे तो न जाने blog कितना लम्बा हो जायेगा. आखिरमे एक ही बात है की परिस्थिति कैसी भी हो कभी हिमंत न हारे. आगे बढ़ते रहे. सब कुछ फिर से नये तरीके से सोचे. थोड़े थोड़े समय के बाद सारी सोच छोड़कर योग का अभ्यास करे मेरे पास तो भाई हजार रोग की एक दवा है योग. योगा के अभ्यास के लिए “योग सूत्र for divine energy” का अभ्यास करे.

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