आपने ये शीषर्क पढ़ा क्या ये हो शकता है ? आम तौर पर तो हम भगवद गीता को केवल एक अध्यात्मिक ग्रन्थ के रूप में देखते है ! लेकिन इसमें ऐसे राज छिपे हुवे है की हमारा पूरा जीवन ही बदल जायेगा. आपको ये जानके बहुत ही ताजुब होगा !
लिकिन ये बात सच है की अगर कोई कुछ धारणा कर ले और एक निश्चय पर आ के अपने कार्य पर ध्यान दे तो कर्म के साथ साथ अपार आनंद और खुशिया भी उसे मिल शकती है तो आये जानिए क्या है वह राज !
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भगवद गीता हमे उस डरसे मुक्त कराती है
सामान्य रूप से हमे खो जाने का डर रहता है. मरने का डर भी हमे बहुत सताता है. हमे बार बार ऐसा लगता है की हमसे ये सब छुट न जाये. इसमें भी जब भी हम कोई positive thinking के motivation देने वाले के पास पहोचते है तब वह हमे ये गोली खिलाते है की ऐसा उल्टा सुलटा सोचो ही मत
सब अच्छा ही होगा तुम्ह अगर बुरा सोचोगे तो ही बुरा होगा. इसके चक्कर में हम हमारे मन में negative ख्याल आये ही नही ऐसा सोच सोच कर मर जाते है. लेकिन फिर भी विपरीत स्थिति तो आती ही है. आदमी लाख ऐसा सोचे की मेरे साथ कुछ बुरा न हो फिर भी ये होता ही है.
क्योकि कौन चाहता है की उनकी मृत्यु हो फिर भी वह तो होती है. नियति प्रकृति अपना कार्य करती ही रहती है. हा एक बात है की हमे केवल stop negative thinking मतलब की केवल एक घटना को ही ध्यान में नही रखना चाहिए. मतलब की ऐसा ही बुरा होगा. इस तरह का ही नही सोचने लगना.
इनके बदले ये सोचना की जो भी हो उसमे हमे स्थिर रहना है. हमे अपने काम पर ध्यान देना चाहिए. अपने जीवन को हर हाल में आनंद से जीना चाहिए भले स्थिति विपरीत क्यों न हो. !
ये कोई छोटी मोटी बात नही. अगर कोई अपना माइंड इस प्रकार का बना ले तो वह permanent happiness खुश रह शकता है क्योकि वह दोनों के लिए तैयार है. उसे भय नही की ऐसा होगा वैसा होगा.
कर्म पर ध्यान लेकिन परिणाम जानने से मुक्ति
कर्म शुरू नही किया की मनमे भय सताने लगता है की क्या होगा ? थोड़ी थोड़ी देर में वह परिणाम को मापते रहता है. दुसरो के साथ अपनी तुलना करता रहता है.
अरे ! उसने तो इतना पा लिया में तो अभी तक पीछे ही हु. ऐसी सोच उत्पन्न होते ही उनका जो कर्म में उत्साह है वह डिम हो जाता है. मेने ऐसे कितने लोग देखे है की जो इस डर से कर्म करना ही छोड़ देते है. मुझे कुछ मिलने वाला नही या failure ही मिलेगा ऐसा डर मनमे उठ खड़ा होता है और आदमी तुरंत कर्म ही छोड़ देता है
यहा गीता कहती है की तुम ये सब छोडो कर्म करते ही रहो. अरे कर्म में ही आनंद लो. कर्म ही तुम्हे फल देगा और वह जैसा भी दे तुम्हे कर्म करने से ही उनका लाभ हो गया. मतलब तुमने कर्म करते हो उसी समय तम्हे उनका फल आनंद और संतोष के रुपमे तो मिल ही जाता है.
फिर भी ऐसा नही की फल मिलता नही लेकिन उनके बारेमे पहले से सोचना नही है.
क्योकि कर्म के फल के बारे में बार बार सोचते रहना ही कर्म की कार्यक्षमता को नुकशान करता है
आनंद का नया रास्ता
जी हा ये बात सच है !! गीता कहती है की तुम जहा आनंद की खोज करते हो वह तो केवल एक आभास ही है. तुम्हारे भीतर ही आनंद का भंडार है.
अगर उसे पा लोगे तो बाहर का आनंद तो उनके आगे कुछ नही लगेगा. चीज वस्तुया बटोरने से ही केवल आनंद नही मिलता. लेकिन उनसे उपर उठने से आनंद मिलता है. यह आनंद तो सभी आनंद से प्रे है और उनके आगे ये सब तो बहुत मामूली है. वह आनंद है तुम्हारा अपना आनंद
इस तरह से ऐसी तो कितनी बाते है की bhagwad geeta can change our life