योग सूत्र
Table of Contents
First of all we pry to Maharshi Patanjali who has composed this sutra.
योगेन चित्स्य पदेन वांचा.. मलं शरीरस्य च वैदयकेन ||
योडपाकरोत्वमं प्रवरं मुनीनां.. पतंजली प्राज्जलीरानतोडस्मि ||
में करबध्ध हो कर उन महर्षि को प्रणाम करता हु जिसने योग द्वारा चित की शुध्धि, व्याकरण द्वारा वाणीकी शुधि और आयुर्वेद द्वारा शरीर को शुद्ध करने का उपाय बताया.
(महर्षि पतंजली ने योग के सभी सूत्रों को संकलित किया और हम तक सहजता से उपलब्ध कराया इसलिए हम पहले उनको प्रणाम करते है. और आगे योग सूत्र का अभ्यास करते है.
यहा पर योग सूत्र एक माध्यम है लेकिन उनके साथ जुड़े हुवे कई ओंर सिध्धांतो और साधना पध्धति जिससे हमे वर्तमान समय में सुख, आनंद और सफलता मिल शके उसे वर्णित किया है.)
(Maharshi Patanjali composed all the quote of Yoga sutra and provide ease. So we should salute him beginning of this great subject.
परमात्मने नम:
अथ योगानुशाशनम || १ ||
अब योग का प्रारंभ करते है. attention में आजाये अपना ध्यान केन्द्रित की जिए. क्योकि योग के सभी सूत्रों दिव्यता से भरपूर है. ये गूढ़ है लेकिन अगर समजने की थोड़ी सी कोशिश करे और उन पर ध्यान करे तो जीवन के काफी सारे रहस्यों अपने आप समजमें आने लगते है
यहां धीरे धीरेमें आपको योग के आनंद के सागर में ले जाऊंगा.. वहा आपको अहलादक आनंद भी मिलेगा और जीवन ध्येय सिध्धि, सुख, सफलता, स्वास्थ्य, तृप्तता इत्यादि सारे रतनो भी मिलेगे. लेकिन आपको थोडा प्रयास करना पड़ेगा. तब ही हम तेरते भी रहगे और निरतिशय आनंद जो आपने पहले कभी अनुभव किया ही नही वह प्राप्त होगा.
Precursor
Yes, yoga is the secret of our happiness and constant pleasure in our life. Secret of energy which is laying in our divine self. But we don't know that and feel unhappy, stress and mental upset. Nothing is impossible for yoga. Yogi can be successful both side for out side world and inside word. It is easy but we are not familiar this procedure.
हा दोनो side से योगी सफलता हासिल कर शकता है. हमारा खोया हुवा self awareness हमे फिरसे वापस दिला शकता है.
Practice is very important in yoga
लेकिन उनके लिए एक systematic efforts (प्रयास की आवयश्कता है). अगर कोई आदमी पानी में तेरने की किताब खरीदकर उसे रट ले तो क्या उसे तेरना आ जायेगा ? नही, इसके लिए तो उन्हें अभ्यास करने की आव्यशकता है. ये एक कला जैसा है. अपने आपमें ही एक circuit develope करनी है जो हमें भीतर से ही सब कुछ दे आनंदभी दे और हमे life में किस और आगे बढ़ना चाहिए यह भी शिखा शके.
Yog sutra can play important role in our yoga journey
आज कल हम देखते है की योगा के बारेमे बहुत कुछ प्रस्तुत किया गया है. और कई लोग इनके अनुसार साधना करतेभी है. लेकिन जो सूत्रात्मक अभ्यास है वह बहुत गहन है.
लोग उसे युही छोड़ देते है. परिणाम सवरूप जो कुछ भी वह करते है उनमे पूरी श्रध्धा नही रहती. केवल दुसरेने कहा और हमने किया ऐसा यहाँ पर होता है !! मूल शास्त्र का अभ्यास अगर थोडा बहुत किया हो तो हमारी श्रध्धा दृढ हो जाती है और फिर भीतर से ही ज्ञान मिलता है एक प्रेरणा मिलती है.
जो आगे बढ़नेमें हमारी मदद करती है. इसलिए यहाँ पर उन्हें सरल language में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है. साथ ही साथ उनका तालमेल हमारे वर्तमान जीवनमें कैसे हो शके यह समजानेका भी प्रयास किया गया है. In short हम जो योगा process आसान, प्राणायाम, सरल ध्यान इत्यादि करते है उनके पीछे कोनसा ज्ञान छिपा है ? उन्हें वर्णित किया गया है.
Yoga is not limited to the posture but there is much more
इनके अलावा मेने देखा है की yoga के जो कुछ प्रयास होते है उसमे से बहुत सारे केवल शाररिक व्यायम तक सिमित है. आसन योग का एक चरण है नही के सब कुछ !! योग में प्राणायाम और ध्यान बहुत ही effective है. इन सबमेभी जो sefl awarness पर ध्यान केन्द्रित करता है वह तो अद्भुत है.
we can never be independent without attaining our self consciousness.
वह हमे दिव्यता की और जल्दी से ले जा शकता है. मन को अपना साधन माने बिना और हमारा अस्तित्व तन और मन से भिन्न माने बिना हम उनसे पर नहीं हो शकते !! जो खुद बंधा हुवा है वह दुसरे को कैसे छुडायेगा हम ये सब करते भी है लेकिन हमे इनके आधारभुत शास्त्र के सूत्र का ज्ञान नही है इसलिए हम भीतरिय चेतना से self enlightenment मतलब की स्वयम जागृत नही हो पाते.
एक example के माध्यम से ये बात समजने का प्रयास करते है. एक पानी की टंकी(tank) और पानी के कुवे में क्या अंतर है. ??
बहुत आसान सा question है पानी की tank में पानी हमे डालना पड़ता है. और कुवे में पानी भीतर से ही बहार आता है. हमे क्या बनना है....!!!
वह हम पर निर्भर है. जिस ज्ञान से हम प्रबुद्ध हो जाये हमारे भीतर ही ज्ञान का वह दीप जल जाये की फिर हमें आनंद के लिए दर दर की ठोकरे न खानी पड़े वही योग का ध्येय है.
My aim is to spread "yoga enjoy" to all and online yoga class will also be started in future
उसी बात को लेकर मेने यह blog शरु किया है. आगे जाके yoga classes भी शरु किये जायेगे. इनके आलावा यहाँ पर योग सूत्र को लिखा जायेगा और उनका क्या अर्थ हो शकता है वह भी लिखा गया है. ये सूत्र का गान और उनको समजने के बाद हमे खुद ही ध्यान, प्राणायामका अभ्यास करना पड़ेगा उनके लिए सरल विधि भी यहाँ पर प्रस्तुत की गई है. मेने यह सब स्वयं type किया है. आपको बस इससे जुड़े रहने की और पढ़ते रहने की आव्यश्कता है.
Simple definition of yoga
योग बड़ाही गहन शब्द है लेकिन हम present time अनुसार बहुत सरल शब्दों में कहे तो योगका मतलब जुड़ना दो चीज का मिलन हो उसे हम योग हुवा ऐसा कहते है. योग के बारेमे जिसकी जैसी सोच वैसी उसकी व्याख्या. अगर कोई केवल आसन ही जानता है तो वह यह कहेगा की योग का मतलब है शारीरिक मजबूती. They describe different types of pose and exercise. Means yoga is only special type of posture as per their belief
But yoga is so great than what we think
But as per our yoga sutra, yoga is art of knowing our divine self. इनके आधार पर देखा जाये तो योग मतलब हमारे भीतर जो दिव्य चेतना है वह पुरे ब्रह्माण्ड में फेली हुई दिव्य शक्ति का एक अंश है. उनका अनुभव बहुत सहज रूप से होना चाहिए. उन्के अनुभव से जो दिव्य आनंद और प्रसन्नता मिलती है वह दुनियामे किसीभी चीज से नहीं मिलती.
It is easily possible to experience our divine self but it does not happen because all of us are constantly involved our mind who are thinking in any subject. हमारा मन निरंतर कुछ न कुछ सोचता रहता है और इस सोचमे हमे विचलित करने वाली सोचभी सामिल है. हमे यह दो तरह के उपाय करने चाहिए. दोनों तरफ से जरा जरा आगे बढ़ना और एक मेक के साथ जुड़ जाना.
One side we should try and try to awake our inner divine self and second to improve our mind thinking method. हमे काम के बिना मन ही मन कुछ भी सोचना नही है. जो भी काम करते है उनमे ही मन लगाना है थोडा बहुत उनके बारेमे सोच लिया बहुत है !!
Opposite thinking creats bad waves and we almost are controlled by it
हमारे फालतू सोच में लगे रहनेकी यह आदत हमे नुकशानभी पहोचाती है. क्योकि this type of thoughts produce lot of bad waves and it harms our mind as well as body too. It is called mind virus too. we have to note down our thought and also control if necessary. If we can not control it, we have to divert them to any other subject.
यु ही देखा जाये तो लम्बे समय तक विपरीत विचारधारा पर रहेना हमारे लिए अच्छा नही है क्योकि विज्ञान भी ये सिध्ध कर चूका है की जब भी कोई लम्बे समय तक ऐसे विपरीत सोचता है तो उनकी काफी energy नष्ट हो जाती है. आम तोर पर हम निरंतर तन और मन में उलझे रहते है.
To connect with our divine selves is really yoga in right sense
मन और मन की उलझने को वृति कहते है. उस वृति से जुदा होकर हमारे भीतर ही जुड़ना योग है. यही बहुत सरल समजुती है. इनके लिए तन और मन की सुध्धि ही तप और साधना है. इने जिव और शिव का मिलनभी माना जाता है. मतलब की जो तन और मन से निरंतर जुड़ा रहता हो वह जिव और जो निरंतर चैतन्यमई हो वह शिव !!
योग अति प्राचीन विद्या है. रुग्वेदमें भी उनके बारेमे काफी कुछ लिखा गया है. यही उनकी प्राचीनता सिद्ध करता है. इनके अलावा हठ योगमेंभी योग की रजुआत अलग तरीकेसे की गई है.
भगवन शिवभी योग के सबसे पहले रचयता माने जाते है. भगवद गीतामे sixth अध्याय योग का है इतना ही नहीं उन्हें कर्म योग का नाम भी दिया गया है.
लेकिन योग को विस्तृत और सैध्धान्तिक तरीके से लिखनेका श्रेय रुषी पतंजली को जाता है. Yog Sutra is written by Maharshi Patanjali. four sections are in it and each section consist with meaning full quote called "Sutra".
You will be so lucky if you can study and practice yoga in present opposite time.
ये सूत्र इतने दिव्य है की आजभी उनका अभ्यास हमारे जीवनमे पूर्णता ला शकता है. सफल और आनंदमई जीवन का राज यही छिपा है. उनका अभ्यासही हमे यहाँ पर करना है. मेने यहाँ पेयथाशक्ति थोडा सरल तरीकेसे लिखनेका प्रयास किया है.
योग अति प्राचीन विद्या है. रुग्वेदमें भी उनके बारेमे काफी कुछ लिखा गया है. यही उनकी प्राचीनता सिद्ध करता है. इनके अलावा हठ योगमेंभी योग की रजुआत अलग तरीकेसे की गई है.
भगवन शिवभी योग के सबसे पहले रचयता माने जाते है. भगवद गीतामे sixth अध्याय योग का है इतना ही नहीं उन्हें कर्म योग का नाम भी दिया गया है.
लेकिन योग को विस्तृत और सैध्धान्तिक तरीके से लिखनेका श्रेय रुषी पतंजली को जाता है. Yog Sutra is written by Maharshi Patanjali. four sections are in it and each section consist with meaning full quote called "Sutra".
ये सूत्र इतने दिव्य है की आजभी उनका अभ्यास हमारे जीवनमे पूर्णता ला शकता है. सफल और आनंदमई जीवन का राज यही छिपा है. उनका अभ्यासही हमे यहाँ पर करना है. You will be so lucky if you can study and practice yoga in present opposite time. मेने यहाँ पे यथाशक्ति थोडा सरल तरीकेसे लिखनेका प्रयास किया है.
भगवद गीतामें भगवान श्री कृष्णने sixtth अध्यायमें हम सब को योग का ज्ञान दिया है. योगम ध्यान कैसे करना है. मन की उछल कूद हमारे लिए कैसे हानिकारक है.
योगी कब निरंतर आनंद का अनुभव् कर शकता है. कर्म अपने आप कर्म योग कैसे बन जाता है. इन सभी बातो को भगवद गीतामे समजाया गया है.
इतना ही नहीं आजके विज्ञान ने भी साबित कर दिया है की यह सारा ब्रह्माण्ड कोई एक शक्ति में ही निहित है. All the universe exists in one energy which is divide in different forms. In this way Bhagvad Gita is called as karm yog. The method of doing work where we can achieve both divine energy and success in our regular life.
श्रीमद भागवत भी एक योग है. उन्हें Bhakti-yogभक्ति योग का नाम दिया गया है. योग के सिध्धांत के अनुरूप दिव्य चेतना की अनुभूति के लिए मन को स्थिर, शुद्ध, और परम चेतना में लींन करना है.
या दुसरे मार्ग में मन से ही अलग हो जाना है. यही बात भागवत में भक्ति के माध्यम से बताई गई है. चित में जमे हुवे पूर्व अनेक जन्मो के संस्कार हमें निरंतर विपरीत वृति में धकेलते रहते है. इसलिए मनमे उचाट, टेंशन, विकार आदि जो कुछ भी गोबर है वह बार बार आके हमे तंग करता रहता है.
उन्हें साफ करने का उपाय यहाँ पर बताया गया है. यहा पर मन को भक्ति में लींन करना है ताकि मन की पकड़ कम हो जाये. इसलिए हम अपने आप ही परम चेतना में लीन होते जायेगे.
"जिसे पाना है उसमे ही लींन हो जाना है" यही भक्ति का सिध्धांत है. यहाँ पर जो कुछ करते है वह सब उनके लिए करते है ऐसा समर्पणभाव जगाना है. इन सबसे क्या होगा की ममत्व कम होगा. ममत्व ही हमे पकड रखता है इस विपरीत ख्याल को !!योग के सूत्र में भी इश्वरप्रणिधानता का उपाय बताया गया है. इस तरह से योगम भक्तिभी समाई हुई है.
योग को कोई योगा कहेते है तो कोई योग. सामान्यतः योग को परम तत्व को पाने की विद्या कहते है. प्राचीन समयमें जो मोक्ष की प्राप्ति करना चाहता हो वह सब कुछ छोड़कर सन्यास ले लेते थे और वनगमन करते थे वहा पर योग का अभ्यास करते थे.
इसलिए उसे अरण्य की विद्याभी कहते है. लेकिन धीरे धीरे ये बात का पता चला की योग विधा दिव्य रतनो की खान है. जैसे जैसे हम आगे बढ़ते जायेगे वैसे वैसे कई लाभ हमे प्राप्त होते जायेगे.
उनका अतिम चरण समाधी है. लेकिन इससे पहले जो एकाग्रता, निरंतर आनद और अलौकिक शक्ति का संचार होता हो वह अवर्णनिय है, अमूल्य है. वर्तमान समय की जो कोई समस्या है वह तन और मनका दूर उपयोग ही है.
उनका असंतुलन हमे दुखी दुखी कर देता है. योग उसे संतुलित करता है इतना ही नही दिव्य शक्ति और निरतिशय आनंद का प्रवाह बिना रुके हम तक पहोचता है.
इनके कारण जीवन हमे आनंददायक लगता है, पूर्ण जोश, उत्साह, कार्यक्षमतामें बढ़ोतरी ऐसे कई लाभ हमे मिलने लगते है. दूसरी और एक वर्ग उन्हें केवल व्यायाम की तरकीब मानते है यह उनके लाभों को मर्यादित समजना है.
लेकिन उसेभी फायदा तो मिलता है लेकिन वह शरीर के स्तर पर रुक जाता है. आगे मन, प्राण और उनसे भी आगे दिव्य चेतना तक वह नही पहोच सकते. जो भी हो वे भी एक तरीके से योगा का उपयोग करने वाले है. लेकिन हमे आगे की और सोचना है इसी लिए यहाँ पर एक अद्भुत blog की रचना की गई है.